ये सच्चाई भी बहोत कड़वी होती है दोस्तो...क्या फिर से गलती का आंकलन पचास साल बाद होना है ? जैसे आजादी के पचास साल बाद हुआ।
नहीं-नहीं अन्ना (&कम्पनी) तुम ग…….. नहीं हो सकते
आज से एक साल पहले तक हमें नहीं पता था ! कि जन लोकपाल बिल क्या है ? एक साल भी पूरा नहीं; कुछ ही महीने कहो। हम केवल इतना जानते थे कोई अन्ना हजारे हैं जो महाराष्ट्र में समाज सेवी हैं। और सरकार से टकराते रहते हैं। अन्ना(& कंपनी) में से एकाध को सीरियल के कारण या सूचना के अधिकार के कारण केवल नाम से जानते थे। बाकियों का तो कभी नाम भी नहीं सुना था।
हमें प...ता लगा ; बाबा रामदेव जंतर-मंतर दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रदर्शन कर रहे हैं, अचानक पता लगा कि इसमें “अन्ना हजारे (& कंपनी)” भी भाग लेंगे। ये दो-तीन नाम ऐसे थे जिन पर देश के लोगों को विश्वास था, इससे बड़ी ख़ुशी हुयी। तभी हमें पता लगा कि जन लोकपाल बिल क्या है । आपके "अप्रेल के अनशन" में "भारत स्वाभिमान" के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया क्योंकि इन्हें बाबा रामदेव पिछले पांच साल से अपने योग शिविरों के माध्यम से देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे और व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन की जड़ें मजबूत कर रहे थे; जिससे नई आजादी आसानी से मिल सके। लेकिन ! जब आपके तेवर वहां बदल गए; और भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं को कोई महत्त्व नहीं दिया गया, उससे भी बड़ी बात; अनशन तोड़ने के बाद जो नए नाम जनता को और सुनाई दिए ! तो माथा ठनका ! और दाल में काला नजर आने लगा ।
हम भारत स्वाभिमान वालों का आन्दोलन है; सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का। जिसमे अंग्रेजों के द्वारा "सशर्त" दी गयी आजादी, उनके द्वारा लागू 34735 कानून, उनके द्वारा लागू शैक्षिक कोर्स और व्यवस्था,उनकी बनायीं न्याय और कानून व्यवस्था,उनका बनाया तंत्र, और भी जो कुछ उन्होंने भारतीयों का "स्वाभिमान" समाप्त करने के लिए किया था; वह सब बदलना। अन्ना ! (&कंपनी) आपने शायद न देखा हो; हम तो 2003 से बाबा रामदेव जी को आस्था चैनल पर देख रहे हैं और जब से "भारत स्वाभिमान ट्रस्ट" बना है उसके सदस्य भी हैं। देश के जो लोग संस्कार हीन हो गए थे उनके संस्कार जगाने का काम बाबा जी ने किया है; लोग अस्वस्थ रहने के और दवा- दारू के आदि हो चुके थे उन्हें स्वास्थ्य का महत्त्व बाबा जी ने ही बताया और स्वस्थ रहने का तरीका बताया। और सबसे बड़ी बात ये बताई और अहसास कराया कि आजादी के 60 वर्षों के बाद भी भारत गुलामी से उबरा नहीं है;अपितु और बुरी स्थिति में है। उन्होंने ही बताया कि "भारत के भ्रष्टों का 300 लाख करोड़" रुपया विदेशी बैंकों में जमा है। 100 लाख करोड़ तो यहीं भारत में ही जमा है। बाबा जी ने ही समझाया है कि ये इतना रुपया है कि एक-एक गाँव को 100 करोड़ रुपया मिल सकता है । उन्होंने ही बड़े नोट( करेंसी) बंद करने की मांग की, और इसके लिए लोगों को समझाया। स्वदेशी का महत्त्व और विदेशी की लूट उन्होंने ही समझाई। समझाई ही नहीं अपितु विदेशी कम्पनियों से मुकाबले के लिए स्वदेशी सामान भी उपलब्ध कराया । आयुर्वेद का महत्त्व तो दुनिया भूल ही चुकी थी उसे भी बाबा जी और बालकृष्ण जी ने ही प्रतिष्ठापित किया और अन्ना (&कंपनी) ! जन लोकपाल बिल को भी बाबा ने अपने मुद्दों में शामिल किया, ये जानते हुए भी; कि "इस व्यवस्था में कोई भी कानून बन जाये सफल नहीं होगा"। केवल इसलिए; कि आन्दोलन दो दिशाओं में न भटके, जैसा कि सरकार चाहती थी।
पर बड़ा आश्चर्य है अन्ना(&कंपनी) ! आपने एक बार भी व्यवस्था परिवर्तन की बात नहीं की। कभी विदेशी कम्पनियों के विरोध की बात नहीं की,कभी भी विदेशों में जमा धन की बात नहीं की, कभी भी कु व्यवस्थाओं की बात नहीं की, कु संस्कारों की बात नहीं की; क्यों ? इससे हमारे मन में भ्रम पैदा हो रहा है। कि ये उसी तरह तो नहीं हो रहा जैसे क्रान्तिकारियो के साथ कांग्रेस(अंग्रेजों की मिलीभगत से) ने किया। नहीं-नहीं अन्ना (&कम्पनी) तुम गलत नहीं हो सकते । इतने बड़े व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन को 'केवल एक जन लोकपाल बिल "कानून मात्र" के लिए' भटकाने का कलंक आपने माथे नहीं ले सकते। तुम उन शक्तियों के हाथों में मोहरे नहीं बन सकते जो भारत का स्वाभिमान जागना नहीं देख सकते। तुम विदेशी कम्पनियों के षड्यंत्रों में शामिल नहीं हो सकते। तुम सरकार(भ्रष्टों) की इच्छा पूर्ति नहीं कर सकते ?अन्ना (&कंपनी) तुम आज के भ्रष्ट मीडिया का मोहरा नहीं बन सकते; जिन पर विदेशी कम्पनियों और पाश्चात्य मानसिकता के लोगों का कब्ज़ा है।
पर ; न जाने क्यों ? विश्वास नहीं होता । न तुम्हारे विचार ही हमने ऐसे सुने, न कोई गतिविधि हमने ऐसी देखी कि आपने कभी "नई आजादी नई व्यवस्था" का जो आन्दोलन बाबा रामदेव ने चलाया है उसका समर्थन किया हो। शायद ही आप में से किसी ने भी आज तक आस्था चैनल पर भारत स्वाभिमान का जनजागरण (योग शिविरों को) देखने के लिए सुबह जल्द उठने की ज़हमत उठाई हो ।
लेकिन क्या करें ? आप और कोई भी स्वतन्त्र है कुछ भी करने को । सही का पता तो तभी चल जाता है ; लेकिन गलती का आंकलन पचास साल बाद होता है । जैसे आजादी के पचास साल बाद हुआ। तब भी जनता की जागरूकता को भ्रामक आजादी की ओर मोड़ दिया गया था और व्यवस्था कुछ लोगों ने अपने और खानदानो के राज करने के लिए बनवा ली थी । - साभार Shankar Dutt Fulara.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें