सर्व धर्म समान - एक बकवास
Lovy Bhardwaj द्वारा
सर्व धर्म समान - एक बकवास
ब्रिटिश शासन द्वारा गुलाम भारत में सनातन धर्म के प्रति हिन्दुओं की आस्था नष्ट करने के लिए McCauley ने जो शिक्षा प्रणाली प्रारम्भ की थी उसके प्रभाव से आज भी शिक्षित समाज के प्रतिष्ठित लोग सनातन धर्म की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण अपने धर्म का गौरव भूल कर पाश्चात्य काल्पनिक सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं l क्योंकि आज भी भारत के विद्यालयों - विश्विद्यालयों में वही झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है जो अंग्रेज कूटनीतिज्ञों ने लिखा था, भारत की छद्म स्वतंत्रता मिलने के बाद भी राजनितिक पार्टियों ने अपने अपने वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से सब धर्म सामान हैं ... ऐसा प्रचार प्रारम्भ किया l उन सबका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना ही था, उनमे से किसी ने भी सब धर्मो का अध्ययन किया होता तो वो ऐसी बात नहीं कह सकते l
बाजार में मिलने वाले सब उपकरण समान नहीं होते, सब वस्त्र समान नहीं होते,
उनका मूल्य उनके गुण-दोषों के आधार पर भिन्न भिन्न निर्धारति किया जाता है l
सब धातुओं के गहने सामान नहीं होते. सोने की कीमत अलग होती है और अलुमिनियम, चांदी, पीतल लोहे आदि की कीमत अलग होती है l
सब सरकारी नौकर सामान नहीं होते ... चपरासी, क्लर्क, कलेक्टर और मंत्रियों को अलग अलग श्रेणी के नौकर माने जाते हैं l सब राजनितिक पार्टियां सामान हैं ... ऐसा कोई कहे तो .. राजनेता नाराज हो जायेंगे l अपनी पार्टी को श्रेष्ठ और अन्य पार्टियों को कनिष्ठ बताते हैं .... पर धर्म के विषय में सब धर्म सामान कहने में उनको लज्जा नही आती l
वास्तव में जैसे विज्ञान के जगत में किसी एक वैज्ञानिक की बात तब तक सच्ची नहीं मानी जाती जब तक की उसे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक तर्क-संगत और प्रायोगिक स्टार पर सच्ची नहीं मानते l ऐसे ही धर्म के विषय पर भी किसी एक व्यक्ति के कहने से उसकी बात सच्ची नहीं मान सकते l क्योंकि उसमे अपने धर्म के प्रति राग और अन्य धर्मो के प्रति द्वेष होने की सम्भावना है l सनातन धर्म के सिवा अन्य धर्म अपने धर्म को ही सच्चा मानते हैं, दुसरे धर्मो की निंदा करते हैं l केवल सनातन धर्म ही अन्य धर्मों के प्रति उदारता और सहिष्णुता का भाव सिखाता है l इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता की सब धर्म समान हैं l
गंगा का जल और ये तालाबों, कुएं या नाली का पानी समान कैसे हो सकता है l
यदि समस्त विश्व के सभी धर्मो को मानने वाले सभी धर्मों का अध्ययन करके तटस्थ अभिप्राय बताने वाले विद्वानों ने किसी धर्म को तर्क संगत और श्रेष्ठ घोषित किया हो तो उसकी महानता को सबको स्वीकार करना पड़ेगा l सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी धर्म को ऐसी व्यापक प्रशस्ति प्राप्त हुई है तो वह है ... सनातन धर्म l
जितनी व्यापक प्रशस्ति सनातन धर्म को मिली है उतनी ही व्यापक आलोचना ईसाईयत और इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों और फिलास्फिस्तों ने की है ....
सनातन धर्म की महिमा और सच्चाई को भारत के संत और महापुरुष तो सदियों से सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रमाणों के द्वारा प्रकट करते आये हैं, फिर भी पाश्चात्य विद्वानों से प्रमाणित होने पर ही किसी की बात को स्वीकार करने वाले पाश्चात्य बोद्धिकों के गुलाम ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी लोग इस लेख को पढ़कर भी सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीअक्र करेंगे तो हमे प्रसन्नता होगी और यदि वो सनातन धर्म के महान ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो उनको इसकी श्रेष्ठता के अनेक सैद्धांतिक प्रमाण मिलेंगे और किसी अनुभवी पुरुष के मार्गदर्शन में साधना करेंगे तो उनको इसके सत्य के प्रायोगिक प्रमाण भी मिलेंगे l आशा है सनातन धर्मावलम्बी इस लेख को पढने के बाद स्वयम को सनातन धर्मी कहलाने पर गर्व का अनुभव करेंगे l निम्नलिखित विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों के वचन सर्व-धर्म सामान कहने वालों के मूंह पर करारे तमाचे मारते हैं और सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हैं ... जैसे चपरासी, सचिव, कलेक्टर आदि सब अधिकारी समान नहीं होते .. गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों का जल .. और कुएं तथा नाली का जल सामान नहीं होता ऐसे ही सब धर्म समान नहीं होते .... सबके प्रति स्नेह सदभाव रखना भारत वर्ष की विशेषता है लेकिन सर्व-धर्म सामान का भाषण करने वाले भोले भले भारत वासियों के दिलो दिमाग में McCauley की कूटनीतिक शिक्षा-निति के और विदेशी गुलामी के संस्कार भरते हैं l सर्वधर्म सामान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l
और बिना पूछे आप इस लेख को SHARE कर सकते हैं ....
1. रोम्या रोलां फ़्रांसिसी विद्वान्
मैंने यूरोप और एशिया के सभी धर्मो का अध्ययन किया है परन्तु मुझे उन सब में सनातन धर्म ही सर्व-श्रेष्ठ दिखाई देता है, मेरा विश्वास है की सनातन धर्म के सामने एक दिन सबको अपना मस्तक झुकाना पड़ेगा l
मानव जाती के अस्तित्व के प्रारम्भ के दिनों से लेकर पृथ्वी पर जहां जिन्दा मनुष्यों के सब स्वप्न साकार हुए हैं तो वह एकमात्र स्थान है ..... भारत l
2 . डाक्टर एनीबेसेंट
मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मो का अध्ययन करके पाया है की सनातन धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म और कोई नहीं है, यदि आप सनातन धर्म छोड़ते हैं तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा भोंकते हैं l
यदि हिन्दू ही .. सनातन धर्म को न बचा सके तो और कौन बचाएगा ?
यदि भारत की सन्तान अपने धर्म पर दृढ न रही तो कौन सनातन धर्म की रक्षा करेगा ?
यदि हम पक्षपात रहित होकर भली भांति परीक्षा करें तो हमें स्वीकार करना होगा की सारे संसार में साहित्य, धर्म, सभ्य, विज्ञान, आयुर्वेद, चिकित्सा, खगोल, गणित आदि का प्रसार सनातन धर्म ने ही किया
3.विक्टर कोसीण
जब हम पूर्व की और उसमे भी शिरोमणी स्वरूप भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक महान कृतियों का अवलोकन करते हैं तब हमें ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है जिनको उन निष्कर्षों से तुलना करने पर की जहां पहुंचकर यूरोपीय प्रतिभा कभी कभी रुक गई है ... हमें पूर्व के आगे घुटने टेक देना पड़ता है l
4. शोपनहार
सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊंचा जीवन को ऊंचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है l इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है इन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शांति मिलेगी l
शोपनहार के इन वचनों पर मेक्समूलर ने कहा की "शोपनहार के इन शब्दों के लिए किसी समर्थन की आवश्यकता हो तो अपने जीवनभर के अध्ययन के आधार पर मैं प्रसन्नतापूर्वक उनका समर्थन करूँगा"
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की ये वही मेक्समूलर है जिसको अंग्रेजों द्वारा प्रतिमाह 1 लाख रूपये वेतन दिया जाता था सनातन धर्म के ग्रन्थों को दूषित करने के लिए .... और उनमे जातिवाद, छुआछूत आदि जैसी मनगढ़ंत बातें योजनाबद्ध रूप से भारी गईं ... आज के समय में ज्यादातर लोग मेक्समूलर के ही दूषित ग्रन्थों को पढ़ कर जातिवाद और छुआछूत के षड्यंत्रों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं l मनु स्मृति को सबसे ज्यादा मेक्समूलर ने ही दूषित किया l
5. फ्रेडरिक स्लेगल
उपनिषदों में वर्णित पूर्वीय आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाशपूंज की तुलना में यूरोपवासियों का उच्छ्तम तत्वज्ञान ऐसा ही लगता है, ऐसा लगता है जैसे मध्यांत सूर्य के व्योम प्याली प्रताप की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती हुई अनलशिखा की कोई चिंगारी जिसकी अस्थिर और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही हो मनो अब बूढी की तब बुझी l
6. पाल डायसन
उपनिषदों की दार्शनिक धाराएं न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है l
7. मोनियर विलियम्स
यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पाइथागोरस दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया l
8. प्रसिद्ध इतिहासकार लेयब्रिज
पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के आदिगुरू आर्य महर्षि हैं, इसमें संदेश नहीं है l
9. थोरो
प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है l गीता के साथ तुलना करने पर जगत का आधुनिक समस्त ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है l मैं नित्य प्रातः काल अपने ह्रदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ l
10. डाक्टर मेकनिकल
भारत वर्ष में गीता बुद्धि की प्रखरता, आचार की उत्कृष्टता एवं धार्मिक उत्साह का एक अपूर्व मिश्रण उपस्थित करती है l
11. के. ब्राउनिंग
गीता का उपदेश इतना अलौकिक पुण्य और ऐसा विलक्षण है की जीवन पथ पर चलते चलते अनेक निराश और श्रांत पथिकों को इसने शांति, आशा और आश्वासन दिया है और उन्हें सदा के लिए चूर चूर होकर मिट जाने से बचा लिया है, जैसे इसने अर्जुन को बचाया l
12. रेवरंड आर्थर
जगदगुरु श्रीकृष्ण ने भगवदगीता के रूप में जगत को एक अति उत्तम दें दी है l ज्ञान, भक्ति, कर्म ये शाश्वत आदर्श एज दुसरे को साथ लिए हुए चलते हैं, इनमे से प्रत्येक अन्य दोनों के लिए आवश्यक है l
13. वीलडुरान्त
भारत हमारी जाती की मातृभूमि है और संस्कृत यूरोप की भाषाओँ की माता (जननी) है और वह हमारी फिलोसोफी की भी माता है l
अरबों के द्वारा (अरब के निवासियों के द्वारा ) भारत से हमारा गणित शास्त्र आयात किया गया है l
इसाई धर्म के मूर्तिमत आदर्श मूलतः बुद्ध के द्वारा मिले हैं इस अर्थ में भी भारत हमारी माता है l
गाँव के लोगों द्वारा स्वराज्य और प्रजातंत्र (लोकतंत्र) की जननी भारत है l
कई प्रकार से भारत हमारी सबकी माता है l
ईसाईयत विषयक
1. इतिहासकार चितरिस सोरोकीं
पिछली कुछ शताब्दियों में सबसे अधिक आक्रामक, लड़ाकू, लालची, सत्ता लोलुप और सत्ता के मद में चूर यदि मानव समाज में कोई अंग हैं तो वो हैं पाश्चात्य ईसाई मिशनरियां l
इन सैकड़ों वर्षों में पाश्चात्य ईसाई देशों ने सब महाद्वीपों और व्यापारियों ने अधिकतर अन्य धर्मोव्ल्म्बी देशों को अपना गुलाम बना कर लूटा l
अमेरिका, आस्ट्रेलिया, एशिया. अफ्रीका आदि के करोड़ों भोले आदिवासियों को इस विचित्र ब्रांड ईसाई मानवप्रेम के अधीन बनाकर उनका अत्यंत निर्दयता से खत्म किया गया, उनकी संस्कृति, चरित्र, जीवनपद्धती, जीवन मूल्यों और संस्थाएं नष्ट भ्रष्ट कर दी गयीं ताकि उन्हें ईसाई बनाया जा सके l
2. फिलोसोफर नित्शे
मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमे आंतरिक विकृति की पराकाष्ठ है l
ईसाईयत गुलाम, फरयाद और चंडाल का पंथ है, ईसाईयत द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है l
इस भयंकर विष का कोई मारण है तो वो केवल सनातन धर्म ही हो सकता है l
इसीलिए ईसाईयत ने सनातन धर्म की शिक्षा-पद्धती और जीवनशैली को नष्ट करके ईसाईयत आधारित शिक्षा पद्धति और जीवनशैली को प्रारम्भ किया और जिसके फलस्वरूप गुरुकुलों, गौ-शालाओं, सांस्कृतिक संस्थाओं, सभ्यताओं, मान्यताओं का दूषित करके उन्हें विकृत करके दिखाया गया और नष्ट किया गया l
ईसाई यह भली-भाँती जानते हैं की यदि भारत के लोग अपने अध्यात्म और संस्कृति से दोबारा जुड़ गए तो विश्व में ईसाईयत को कोई नहीं पूछेगा l
3. टोलस्टोय
विश्व के किसी भी धर्म ने इतनी वाहियात अवैज्ञानिक, आपस में विरोधी और अनैतिक बातों का उपदेश नहीं दिया, जितना चर्चों ने दिया है l
4. ज्यार्ज बर्नार्ड शा
बाइबल पुराने और दकियानूसी अंध-विश्वासों का एक बंडल है l
5. एच. जी. वेल्स
दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है रोमन कैथोलिक चर्च
6. पंडित श्री राम शर्मा आचार्य
भारत में पादरियों का धर्म प्रचार सनातन धर्म को मिटाने का खुला षड्यंत्र है जो की एक लंबे अरसे से चला आ रहा है l हिन्दुओं का यह धार्मिक कर्तव्य है की वे ईसाईयों के षड्यंत्र से आत्मरक्षा में अपना तन,मन,धन लगा कर और आज के हिन्दुओं को लपेटती हुई ईसाईयत की लापत परोक्ष रूप से उनकी और बढ़ रही है उसे वहीं बुझा दे l
ऐसा करने से ही भारत में धर्म-निरपेक्षता, धार्मिक-बंधुत्व तथा सच्चे लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी अन्यथा पुनः आजादी को खतरे की संभावना हो सकती है l
7. महात्मा गांधी
हमें गौ-मांस भक्षण और शराब पीने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए, धर्म परिवर्तन वो जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है l
मिशनरियों के प्रभाव से हिन्दू परिवार का विदेशी भाषा, वेशभूषा, रीतिरिवाज के द्वारा विघटन हुआ है l
यदि मुझे कानून बनाने का अधिकार होता तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता इसे तो मिशनरियों ने एक व्यापार बना लिया है l
परधर्म आत्मा की उन्नति का विषय है इसे रोटी, कपड़ा या दवाइयों के बदले में बेचा या बदला नहीं जा सकता l
8. स्वामी विवेकानन्द जी
हिन्दू समाज में से एक व्यक्ति मुस्लियम या ईसाई बने इसका मतलब यह नहीं की एक हिन्दू कम हुआ, किन्तु हिन्दू समाज का एक दुश्मन बढ़ा l
विश्व के महान धर्मो में हिन्दू धर्म के समान और कोई सर्वग्राही और वैविहय्पूर्ण धर्म नहीं है
अन्य इतिहासकार तथा फोलोसोफर
उजल्यु क्रुक
कन्फेशन्स से लेकर अंतिम रचना तक ऐसी एक भी टोलस्टोय की साहित्यिक रचना नहीं है जो हिन्दू विचार से प्रेरणा लेकर न लिखी गई हो l
मार्कोवीच
बीज-गणित, ज्यामितीय और आकाश विज्ञान में उनके उपयोग करने की खोज सनातन धर्म ने ही की है l
सर मैनर विलियम
भारत की आध्यात्मिकता समस्त विश्व में सबसे अधिक बहु-आयामी है इस बात में संदेह नहीं l
ज्यार्ज फ्युरेसटीन
उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है l मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरूप में जगाना है l
बेनेडिफ़टीन फाघर
समारे सम्पूर्ण शुभ गुणों का आधार ईश्वर ऐसा नहीं है जैसा OLD TESTAMENT में बताया है है की वह हमारा विरोधी और हमसे अलग है लेकिन वह अपनी दिव्य आत्मा है l
यह बात आयर एनी बहुत सी बातें हम उपनिषदों से सीखते हैं l ईसाई चेतना को अंतिम रूप देने के लिए हमे यह पाठ पढ़ना होगा तभी वह सब इस और स सुसंगत और पूर्ण होगी l
पोल ड्यूसन
भारत ने विश्व को एक ऐसा धर्म दिया है जो सबसे प्राचीन है और तर्कसंगत भी है l भारत के विषय में वर्णन करते हुए वोल्टेयर ने लिखा है की विश्व के सभी देशों को भारत का आश्रय लेना पड़ता था l जबकि भारत को किसी भी देश का आश्रय नहीं लेना पड़ा, उसने एशिया के महान सम्राट फ्रोड्रिक को आश्वस्त किया की "हमारा पवित्र ईसाई धर्म केवल ब्रह्म के प्राचीन सनातन धर्म पर आधारित है l"
रामस्वरूप
धर्म के क्षेत्र में सब राष्ट्र दरिद्र हैं, लेकिन भारत इस क्षेत्र में अरबोंपति है l
मार्क ट्वेइन (अमेरिकन विद्वान्)
इस्लाम और ईसाईयत एक ही सिक्के के दो पहलु हैं, सनातन धर्म की शिक्षाओं के बाद किसी और धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती l
मेरी समझ में यह नहीं आता की क्यों ईसाईयत और इस्लाम को प्रारम्भ किया गया जबकि सबसे परिपूर्ण, वैज्ञानिक, प्रायोगिक सनातन धर्म अस्तित्व में तब भी था और आज भी है l
संपत भूपालम
जैसे कोई इजीप्ट या बेबिलोनिया या असीरिया के इतिहास का समापन कर सकता है ऐसे भारत के इतिहास का समापन नहीं कर सकता क्योंकि यह इतिहास अब भी बनाया जा रहा है l
यह संस्कृति अभी भी सृजनशील है l
वील ड्यूश
जब जब भी मैं वेदों के किसी भाग का पठान किया है तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है l
वेदों के महान उपदेशों में साम्प्रदायिकता की गंध भी नहीं है l
यह महान सनातन धर्म सर्व-युगों के लिए, स्थानों के लिए और राष्ट्रों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है l
हेनरी डेविड
सब प्राणियों के श्रीदे में बसने वाले सर्व-व्यापक ईश्वर का उपदेश देने की अद्भुत सूक्ष्मता के कारण ही वास्तव में हिन्दू धर्म से अत्यंत प्रभावित हुआ हूँ l
सर विलियम्स जोन्स
जब हम वेदान्त और उस पर आधारित सुन्दर सत्साहित्य को पढ़ते हैं तब यह माने बिना नहीं रह सकते की पायथागोरस और प्लेटो ने उनके सूक्ष्म सिद्धांत भारतीय ऋषियों के मूल स्रोत से ही प्रान्त किये हैं l
यह है वास्तविकता ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित कान्वेंट स्कूलों की
गुजरात के प्रसिद्ध दैनिक गुजरात समाचार में छपी खबर के अनुसार अहमदाबाद के ओढव विस्तार के ईसाई मिशनरी संचालित होसन्ना मिशनरी स्कूल के संचालकों ने माला पहनने पर, तिलक लगाने पर, कंगन पहनने पर, पायल पहनने पर, एवं राष्ट्रगीत गाने पर प्रतिबन्ध लगाया है l
कुछ ख़ास वस्त्र पहनकर आने का सख्त आदेश दिया है, क्योंकि वे जानते हैं की इन चीजों के रहते हिन्दू बालकों में सनातन धर्म के संस्कार बने रहेंगे और उनको धर्मान्तरण कराने में मुश्किल होगी l इससे ऐसे गैर-कानूनी आदेशों का उल्लंघन करने वाले पर विद्यार्थियों को सख्त सजा देकर उनकी पिटाई की जाती है l
हाल ही में एक छात्र सलवार एवं पायल पहनकर तथा तिलक लगाकर स्कूल में आई तो शिक्षिका ने उसे लकड़ी से मारा l
इस दुष्कृत्य का दूसरी शिक्षिका ने विरोध किया तो उस शिक्षिका को पाठशाला से तुरंत ही निकाल दिया गया l
हालांकि ऐसी अन्यायपूर्ण नीति का विरोध करने के लिए सैकड़ों विद्यार्थी एवं उनके माता-पिता एकत्रित हो गए एवं संचालकों के विरोध में नारे लगाने लगे l इसके बाद पुलिस एवं गुजरात शिक्षाधिकारी के कार्यकाल में भी संचालकों के विरोध में शिकायत दर्ज करवाई l
स्पष्ट देखा जाता है की मिशनरियों द्वारा शिक्षा की आड़ में बालकों में हिन्दू संस्कृति के विरोधी कु-संस्कारों का सींचन करके उनका धर्मान्तरण करवाने का षड्यंत्र हमारे देश में तीव्र गति से बढ़ रहा है l माता पिता सोचते हैं की हमारे बच्चे मिशनरी स्कूलों में पढ़ कर जीवन में ज्यादा आगे बढ़ेंगे लेकिन उनको यह पता नहीं की धर्मान्तरण के अड्डे बन चुकी ये कु-पाठशालाएं बालकों के मस्तिष्क में सनातन संस्कृति, उनके रीति रिवाज़ एवं देवी-देवताओं के विरोध में मनगढ़ंत बातें भर कर उनको गुमराह करके ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है l
और इस कु-पष्ठ्शालाओं में पढ़ कर ज्यादातर बच्चे इतना आगे बढ़ जाते हैं की एक दिन नैतिकता में गिर ही जाते हैं अपने माता पिता को भी छोड़ दते हैं l
क्या हम अपने ही देश में पराये होना चाहते हैं ??
क्या हम फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ना चाहते हैं ?
यदि नहीं तो आइये मिशनरियों के ऐसे षड्यंत्रों का सख्त विरोध करें एवं अपने बच्चों को ऐसे मिशनरी संचालित कु-पाठशालाओं में पढने भेज कर उनके भविष्य को अन्धकार में न डालें, और देश की स्वतंत्रता को खतरे में न देलीं l
धर्म परिवर्तन के ऐसे षड्यंत्रों से स्वयं सावधान रहें और सम्पर्क में आने वालों को भी सावधान करें l
जय श्री राम
जय भारत जय हो
प्रत्यंचा : सनातन संस्कृति के साथ विकास की ओर
http://www.facebook.com/home.php?sk=group_175606369142182&ap=1
ब्रिटिश शासन द्वारा गुलाम भारत में सनातन धर्म के प्रति हिन्दुओं की आस्था नष्ट करने के लिए McCauley ने जो शिक्षा प्रणाली प्रारम्भ की थी उसके प्रभाव से आज भी शिक्षित समाज के प्रतिष्ठित लोग सनातन धर्म की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण अपने धर्म का गौरव भूल कर पाश्चात्य काल्पनिक सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं l क्योंकि आज भी भारत के विद्यालयों - विश्विद्यालयों में वही झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है जो अंग्रेज कूटनीतिज्ञों ने लिखा था, भारत की छद्म स्वतंत्रता मिलने के बाद भी राजनितिक पार्टियों ने अपने अपने वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से सब धर्म सामान हैं ... ऐसा प्रचार प्रारम्भ किया l उन सबका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना ही था, उनमे से किसी ने भी सब धर्मो का अध्ययन किया होता तो वो ऐसी बात नहीं कह सकते l
बाजार में मिलने वाले सब उपकरण समान नहीं होते, सब वस्त्र समान नहीं होते,
उनका मूल्य उनके गुण-दोषों के आधार पर भिन्न भिन्न निर्धारति किया जाता है l
सब धातुओं के गहने सामान नहीं होते. सोने की कीमत अलग होती है और अलुमिनियम, चांदी, पीतल लोहे आदि की कीमत अलग होती है l
सब सरकारी नौकर सामान नहीं होते ... चपरासी, क्लर्क, कलेक्टर और मंत्रियों को अलग अलग श्रेणी के नौकर माने जाते हैं l सब राजनितिक पार्टियां सामान हैं ... ऐसा कोई कहे तो .. राजनेता नाराज हो जायेंगे l अपनी पार्टी को श्रेष्ठ और अन्य पार्टियों को कनिष्ठ बताते हैं .... पर धर्म के विषय में सब धर्म सामान कहने में उनको लज्जा नही आती l
वास्तव में जैसे विज्ञान के जगत में किसी एक वैज्ञानिक की बात तब तक सच्ची नहीं मानी जाती जब तक की उसे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक तर्क-संगत और प्रायोगिक स्टार पर सच्ची नहीं मानते l ऐसे ही धर्म के विषय पर भी किसी एक व्यक्ति के कहने से उसकी बात सच्ची नहीं मान सकते l क्योंकि उसमे अपने धर्म के प्रति राग और अन्य धर्मो के प्रति द्वेष होने की सम्भावना है l सनातन धर्म के सिवा अन्य धर्म अपने धर्म को ही सच्चा मानते हैं, दुसरे धर्मो की निंदा करते हैं l केवल सनातन धर्म ही अन्य धर्मों के प्रति उदारता और सहिष्णुता का भाव सिखाता है l इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता की सब धर्म समान हैं l
गंगा का जल और ये तालाबों, कुएं या नाली का पानी समान कैसे हो सकता है l
यदि समस्त विश्व के सभी धर्मो को मानने वाले सभी धर्मों का अध्ययन करके तटस्थ अभिप्राय बताने वाले विद्वानों ने किसी धर्म को तर्क संगत और श्रेष्ठ घोषित किया हो तो उसकी महानता को सबको स्वीकार करना पड़ेगा l सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी धर्म को ऐसी व्यापक प्रशस्ति प्राप्त हुई है तो वह है ... सनातन धर्म l
जितनी व्यापक प्रशस्ति सनातन धर्म को मिली है उतनी ही व्यापक आलोचना ईसाईयत और इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों और फिलास्फिस्तों ने की है ....
सनातन धर्म की महिमा और सच्चाई को भारत के संत और महापुरुष तो सदियों से सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रमाणों के द्वारा प्रकट करते आये हैं, फिर भी पाश्चात्य विद्वानों से प्रमाणित होने पर ही किसी की बात को स्वीकार करने वाले पाश्चात्य बोद्धिकों के गुलाम ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी लोग इस लेख को पढ़कर भी सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीअक्र करेंगे तो हमे प्रसन्नता होगी और यदि वो सनातन धर्म के महान ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो उनको इसकी श्रेष्ठता के अनेक सैद्धांतिक प्रमाण मिलेंगे और किसी अनुभवी पुरुष के मार्गदर्शन में साधना करेंगे तो उनको इसके सत्य के प्रायोगिक प्रमाण भी मिलेंगे l आशा है सनातन धर्मावलम्बी इस लेख को पढने के बाद स्वयम को सनातन धर्मी कहलाने पर गर्व का अनुभव करेंगे l निम्नलिखित विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों के वचन सर्व-धर्म सामान कहने वालों के मूंह पर करारे तमाचे मारते हैं और सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हैं ... जैसे चपरासी, सचिव, कलेक्टर आदि सब अधिकारी समान नहीं होते .. गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों का जल .. और कुएं तथा नाली का जल सामान नहीं होता ऐसे ही सब धर्म समान नहीं होते .... सबके प्रति स्नेह सदभाव रखना भारत वर्ष की विशेषता है लेकिन सर्व-धर्म सामान का भाषण करने वाले भोले भले भारत वासियों के दिलो दिमाग में McCauley की कूटनीतिक शिक्षा-निति के और विदेशी गुलामी के संस्कार भरते हैं l सर्वधर्म सामान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l
और बिना पूछे आप इस लेख को SHARE कर सकते हैं ....
1. रोम्या रोलां फ़्रांसिसी विद्वान्
मैंने यूरोप और एशिया के सभी धर्मो का अध्ययन किया है परन्तु मुझे उन सब में सनातन धर्म ही सर्व-श्रेष्ठ दिखाई देता है, मेरा विश्वास है की सनातन धर्म के सामने एक दिन सबको अपना मस्तक झुकाना पड़ेगा l
मानव जाती के अस्तित्व के प्रारम्भ के दिनों से लेकर पृथ्वी पर जहां जिन्दा मनुष्यों के सब स्वप्न साकार हुए हैं तो वह एकमात्र स्थान है ..... भारत l
2 . डाक्टर एनीबेसेंट
मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मो का अध्ययन करके पाया है की सनातन धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म और कोई नहीं है, यदि आप सनातन धर्म छोड़ते हैं तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा भोंकते हैं l
यदि हिन्दू ही .. सनातन धर्म को न बचा सके तो और कौन बचाएगा ?
यदि भारत की सन्तान अपने धर्म पर दृढ न रही तो कौन सनातन धर्म की रक्षा करेगा ?
यदि हम पक्षपात रहित होकर भली भांति परीक्षा करें तो हमें स्वीकार करना होगा की सारे संसार में साहित्य, धर्म, सभ्य, विज्ञान, आयुर्वेद, चिकित्सा, खगोल, गणित आदि का प्रसार सनातन धर्म ने ही किया
3.विक्टर कोसीण
जब हम पूर्व की और उसमे भी शिरोमणी स्वरूप भारत की साहित्यिक एवं दार्शनिक महान कृतियों का अवलोकन करते हैं तब हमें ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है जिनको उन निष्कर्षों से तुलना करने पर की जहां पहुंचकर यूरोपीय प्रतिभा कभी कभी रुक गई है ... हमें पूर्व के आगे घुटने टेक देना पड़ता है l
4. शोपनहार
सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊंचा जीवन को ऊंचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है l इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है इन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शांति मिलेगी l
शोपनहार के इन वचनों पर मेक्समूलर ने कहा की "शोपनहार के इन शब्दों के लिए किसी समर्थन की आवश्यकता हो तो अपने जीवनभर के अध्ययन के आधार पर मैं प्रसन्नतापूर्वक उनका समर्थन करूँगा"
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की ये वही मेक्समूलर है जिसको अंग्रेजों द्वारा प्रतिमाह 1 लाख रूपये वेतन दिया जाता था सनातन धर्म के ग्रन्थों को दूषित करने के लिए .... और उनमे जातिवाद, छुआछूत आदि जैसी मनगढ़ंत बातें योजनाबद्ध रूप से भारी गईं ... आज के समय में ज्यादातर लोग मेक्समूलर के ही दूषित ग्रन्थों को पढ़ कर जातिवाद और छुआछूत के षड्यंत्रों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं l मनु स्मृति को सबसे ज्यादा मेक्समूलर ने ही दूषित किया l
5. फ्रेडरिक स्लेगल
उपनिषदों में वर्णित पूर्वीय आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाशपूंज की तुलना में यूरोपवासियों का उच्छ्तम तत्वज्ञान ऐसा ही लगता है, ऐसा लगता है जैसे मध्यांत सूर्य के व्योम प्याली प्रताप की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती हुई अनलशिखा की कोई चिंगारी जिसकी अस्थिर और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही हो मनो अब बूढी की तब बुझी l
6. पाल डायसन
उपनिषदों की दार्शनिक धाराएं न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है l
7. मोनियर विलियम्स
यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पाइथागोरस दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया l
8. प्रसिद्ध इतिहासकार लेयब्रिज
पाश्चात्य दर्शनशास्त्र के आदिगुरू आर्य महर्षि हैं, इसमें संदेश नहीं है l
9. थोरो
प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है l गीता के साथ तुलना करने पर जगत का आधुनिक समस्त ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है l मैं नित्य प्रातः काल अपने ह्रदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ l
10. डाक्टर मेकनिकल
भारत वर्ष में गीता बुद्धि की प्रखरता, आचार की उत्कृष्टता एवं धार्मिक उत्साह का एक अपूर्व मिश्रण उपस्थित करती है l
11. के. ब्राउनिंग
गीता का उपदेश इतना अलौकिक पुण्य और ऐसा विलक्षण है की जीवन पथ पर चलते चलते अनेक निराश और श्रांत पथिकों को इसने शांति, आशा और आश्वासन दिया है और उन्हें सदा के लिए चूर चूर होकर मिट जाने से बचा लिया है, जैसे इसने अर्जुन को बचाया l
12. रेवरंड आर्थर
जगदगुरु श्रीकृष्ण ने भगवदगीता के रूप में जगत को एक अति उत्तम दें दी है l ज्ञान, भक्ति, कर्म ये शाश्वत आदर्श एज दुसरे को साथ लिए हुए चलते हैं, इनमे से प्रत्येक अन्य दोनों के लिए आवश्यक है l
13. वीलडुरान्त
भारत हमारी जाती की मातृभूमि है और संस्कृत यूरोप की भाषाओँ की माता (जननी) है और वह हमारी फिलोसोफी की भी माता है l
अरबों के द्वारा (अरब के निवासियों के द्वारा ) भारत से हमारा गणित शास्त्र आयात किया गया है l
इसाई धर्म के मूर्तिमत आदर्श मूलतः बुद्ध के द्वारा मिले हैं इस अर्थ में भी भारत हमारी माता है l
गाँव के लोगों द्वारा स्वराज्य और प्रजातंत्र (लोकतंत्र) की जननी भारत है l
कई प्रकार से भारत हमारी सबकी माता है l
ईसाईयत विषयक
1. इतिहासकार चितरिस सोरोकीं
पिछली कुछ शताब्दियों में सबसे अधिक आक्रामक, लड़ाकू, लालची, सत्ता लोलुप और सत्ता के मद में चूर यदि मानव समाज में कोई अंग हैं तो वो हैं पाश्चात्य ईसाई मिशनरियां l
इन सैकड़ों वर्षों में पाश्चात्य ईसाई देशों ने सब महाद्वीपों और व्यापारियों ने अधिकतर अन्य धर्मोव्ल्म्बी देशों को अपना गुलाम बना कर लूटा l
अमेरिका, आस्ट्रेलिया, एशिया. अफ्रीका आदि के करोड़ों भोले आदिवासियों को इस विचित्र ब्रांड ईसाई मानवप्रेम के अधीन बनाकर उनका अत्यंत निर्दयता से खत्म किया गया, उनकी संस्कृति, चरित्र, जीवनपद्धती, जीवन मूल्यों और संस्थाएं नष्ट भ्रष्ट कर दी गयीं ताकि उन्हें ईसाई बनाया जा सके l
2. फिलोसोफर नित्शे
मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमे आंतरिक विकृति की पराकाष्ठ है l
ईसाईयत गुलाम, फरयाद और चंडाल का पंथ है, ईसाईयत द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है l
इस भयंकर विष का कोई मारण है तो वो केवल सनातन धर्म ही हो सकता है l
इसीलिए ईसाईयत ने सनातन धर्म की शिक्षा-पद्धती और जीवनशैली को नष्ट करके ईसाईयत आधारित शिक्षा पद्धति और जीवनशैली को प्रारम्भ किया और जिसके फलस्वरूप गुरुकुलों, गौ-शालाओं, सांस्कृतिक संस्थाओं, सभ्यताओं, मान्यताओं का दूषित करके उन्हें विकृत करके दिखाया गया और नष्ट किया गया l
ईसाई यह भली-भाँती जानते हैं की यदि भारत के लोग अपने अध्यात्म और संस्कृति से दोबारा जुड़ गए तो विश्व में ईसाईयत को कोई नहीं पूछेगा l
3. टोलस्टोय
विश्व के किसी भी धर्म ने इतनी वाहियात अवैज्ञानिक, आपस में विरोधी और अनैतिक बातों का उपदेश नहीं दिया, जितना चर्चों ने दिया है l
4. ज्यार्ज बर्नार्ड शा
बाइबल पुराने और दकियानूसी अंध-विश्वासों का एक बंडल है l
5. एच. जी. वेल्स
दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है रोमन कैथोलिक चर्च
6. पंडित श्री राम शर्मा आचार्य
भारत में पादरियों का धर्म प्रचार सनातन धर्म को मिटाने का खुला षड्यंत्र है जो की एक लंबे अरसे से चला आ रहा है l हिन्दुओं का यह धार्मिक कर्तव्य है की वे ईसाईयों के षड्यंत्र से आत्मरक्षा में अपना तन,मन,धन लगा कर और आज के हिन्दुओं को लपेटती हुई ईसाईयत की लापत परोक्ष रूप से उनकी और बढ़ रही है उसे वहीं बुझा दे l
ऐसा करने से ही भारत में धर्म-निरपेक्षता, धार्मिक-बंधुत्व तथा सच्चे लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी अन्यथा पुनः आजादी को खतरे की संभावना हो सकती है l
7. महात्मा गांधी
हमें गौ-मांस भक्षण और शराब पीने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए, धर्म परिवर्तन वो जहर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है l
मिशनरियों के प्रभाव से हिन्दू परिवार का विदेशी भाषा, वेशभूषा, रीतिरिवाज के द्वारा विघटन हुआ है l
यदि मुझे कानून बनाने का अधिकार होता तो मैं धर्म परिवर्तन बंद करवा देता इसे तो मिशनरियों ने एक व्यापार बना लिया है l
परधर्म आत्मा की उन्नति का विषय है इसे रोटी, कपड़ा या दवाइयों के बदले में बेचा या बदला नहीं जा सकता l
8. स्वामी विवेकानन्द जी
हिन्दू समाज में से एक व्यक्ति मुस्लियम या ईसाई बने इसका मतलब यह नहीं की एक हिन्दू कम हुआ, किन्तु हिन्दू समाज का एक दुश्मन बढ़ा l
विश्व के महान धर्मो में हिन्दू धर्म के समान और कोई सर्वग्राही और वैविहय्पूर्ण धर्म नहीं है
अन्य इतिहासकार तथा फोलोसोफर
उजल्यु क्रुक
कन्फेशन्स से लेकर अंतिम रचना तक ऐसी एक भी टोलस्टोय की साहित्यिक रचना नहीं है जो हिन्दू विचार से प्रेरणा लेकर न लिखी गई हो l
मार्कोवीच
बीज-गणित, ज्यामितीय और आकाश विज्ञान में उनके उपयोग करने की खोज सनातन धर्म ने ही की है l
सर मैनर विलियम
भारत की आध्यात्मिकता समस्त विश्व में सबसे अधिक बहु-आयामी है इस बात में संदेह नहीं l
ज्यार्ज फ्युरेसटीन
उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है l मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरूप में जगाना है l
बेनेडिफ़टीन फाघर
समारे सम्पूर्ण शुभ गुणों का आधार ईश्वर ऐसा नहीं है जैसा OLD TESTAMENT में बताया है है की वह हमारा विरोधी और हमसे अलग है लेकिन वह अपनी दिव्य आत्मा है l
यह बात आयर एनी बहुत सी बातें हम उपनिषदों से सीखते हैं l ईसाई चेतना को अंतिम रूप देने के लिए हमे यह पाठ पढ़ना होगा तभी वह सब इस और स सुसंगत और पूर्ण होगी l
पोल ड्यूसन
भारत ने विश्व को एक ऐसा धर्म दिया है जो सबसे प्राचीन है और तर्कसंगत भी है l भारत के विषय में वर्णन करते हुए वोल्टेयर ने लिखा है की विश्व के सभी देशों को भारत का आश्रय लेना पड़ता था l जबकि भारत को किसी भी देश का आश्रय नहीं लेना पड़ा, उसने एशिया के महान सम्राट फ्रोड्रिक को आश्वस्त किया की "हमारा पवित्र ईसाई धर्म केवल ब्रह्म के प्राचीन सनातन धर्म पर आधारित है l"
रामस्वरूप
धर्म के क्षेत्र में सब राष्ट्र दरिद्र हैं, लेकिन भारत इस क्षेत्र में अरबोंपति है l
मार्क ट्वेइन (अमेरिकन विद्वान्)
इस्लाम और ईसाईयत एक ही सिक्के के दो पहलु हैं, सनातन धर्म की शिक्षाओं के बाद किसी और धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती l
मेरी समझ में यह नहीं आता की क्यों ईसाईयत और इस्लाम को प्रारम्भ किया गया जबकि सबसे परिपूर्ण, वैज्ञानिक, प्रायोगिक सनातन धर्म अस्तित्व में तब भी था और आज भी है l
संपत भूपालम
जैसे कोई इजीप्ट या बेबिलोनिया या असीरिया के इतिहास का समापन कर सकता है ऐसे भारत के इतिहास का समापन नहीं कर सकता क्योंकि यह इतिहास अब भी बनाया जा रहा है l
यह संस्कृति अभी भी सृजनशील है l
वील ड्यूश
जब जब भी मैं वेदों के किसी भाग का पठान किया है तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है l
वेदों के महान उपदेशों में साम्प्रदायिकता की गंध भी नहीं है l
यह महान सनातन धर्म सर्व-युगों के लिए, स्थानों के लिए और राष्ट्रों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है l
हेनरी डेविड
सब प्राणियों के श्रीदे में बसने वाले सर्व-व्यापक ईश्वर का उपदेश देने की अद्भुत सूक्ष्मता के कारण ही वास्तव में हिन्दू धर्म से अत्यंत प्रभावित हुआ हूँ l
सर विलियम्स जोन्स
जब हम वेदान्त और उस पर आधारित सुन्दर सत्साहित्य को पढ़ते हैं तब यह माने बिना नहीं रह सकते की पायथागोरस और प्लेटो ने उनके सूक्ष्म सिद्धांत भारतीय ऋषियों के मूल स्रोत से ही प्रान्त किये हैं l
यह है वास्तविकता ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित कान्वेंट स्कूलों की
गुजरात के प्रसिद्ध दैनिक गुजरात समाचार में छपी खबर के अनुसार अहमदाबाद के ओढव विस्तार के ईसाई मिशनरी संचालित होसन्ना मिशनरी स्कूल के संचालकों ने माला पहनने पर, तिलक लगाने पर, कंगन पहनने पर, पायल पहनने पर, एवं राष्ट्रगीत गाने पर प्रतिबन्ध लगाया है l
कुछ ख़ास वस्त्र पहनकर आने का सख्त आदेश दिया है, क्योंकि वे जानते हैं की इन चीजों के रहते हिन्दू बालकों में सनातन धर्म के संस्कार बने रहेंगे और उनको धर्मान्तरण कराने में मुश्किल होगी l इससे ऐसे गैर-कानूनी आदेशों का उल्लंघन करने वाले पर विद्यार्थियों को सख्त सजा देकर उनकी पिटाई की जाती है l
हाल ही में एक छात्र सलवार एवं पायल पहनकर तथा तिलक लगाकर स्कूल में आई तो शिक्षिका ने उसे लकड़ी से मारा l
इस दुष्कृत्य का दूसरी शिक्षिका ने विरोध किया तो उस शिक्षिका को पाठशाला से तुरंत ही निकाल दिया गया l
हालांकि ऐसी अन्यायपूर्ण नीति का विरोध करने के लिए सैकड़ों विद्यार्थी एवं उनके माता-पिता एकत्रित हो गए एवं संचालकों के विरोध में नारे लगाने लगे l इसके बाद पुलिस एवं गुजरात शिक्षाधिकारी के कार्यकाल में भी संचालकों के विरोध में शिकायत दर्ज करवाई l
स्पष्ट देखा जाता है की मिशनरियों द्वारा शिक्षा की आड़ में बालकों में हिन्दू संस्कृति के विरोधी कु-संस्कारों का सींचन करके उनका धर्मान्तरण करवाने का षड्यंत्र हमारे देश में तीव्र गति से बढ़ रहा है l माता पिता सोचते हैं की हमारे बच्चे मिशनरी स्कूलों में पढ़ कर जीवन में ज्यादा आगे बढ़ेंगे लेकिन उनको यह पता नहीं की धर्मान्तरण के अड्डे बन चुकी ये कु-पाठशालाएं बालकों के मस्तिष्क में सनातन संस्कृति, उनके रीति रिवाज़ एवं देवी-देवताओं के विरोध में मनगढ़ंत बातें भर कर उनको गुमराह करके ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है l
और इस कु-पष्ठ्शालाओं में पढ़ कर ज्यादातर बच्चे इतना आगे बढ़ जाते हैं की एक दिन नैतिकता में गिर ही जाते हैं अपने माता पिता को भी छोड़ दते हैं l
क्या हम अपने ही देश में पराये होना चाहते हैं ??
क्या हम फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ना चाहते हैं ?
यदि नहीं तो आइये मिशनरियों के ऐसे षड्यंत्रों का सख्त विरोध करें एवं अपने बच्चों को ऐसे मिशनरी संचालित कु-पाठशालाओं में पढने भेज कर उनके भविष्य को अन्धकार में न डालें, और देश की स्वतंत्रता को खतरे में न देलीं l
धर्म परिवर्तन के ऐसे षड्यंत्रों से स्वयं सावधान रहें और सम्पर्क में आने वालों को भी सावधान करें l
जय श्री राम
जय भारत जय हो
प्रत्यंचा : सनातन संस्कृति के साथ विकास की ओर
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