शनिवार, सितंबर 03, 2011

भारत देशम जहां धर्म निरपेक्षता (सेकुलरिस्म) एक मज़ाक है ....... बहुसंख्यकों के साथ

भारत देशम जहां धर्म निरपेक्षता (सेकुलरिस्म) एक मज़ाक है ....... बहुसंख्यकों के साथ

  1. भारत के मुर्दे 'अँग्रेजो के संविधान' मे धारा 25,26,29,30 अल्प संख्यकों को विशेषाधिकार देती है क्या किसी देश मे ऐसे विशेषाधिकार दिये जाते है या दिये जा रहे है ? 
  2. अल्पसंख्यक की परिभाषा भी नहीं है, किसे कहते है अल्प संख्यक ? अन्तराष्ट्रिय मानदंड कहते है की जिनकी आबादी 10% से कम है वे अल्प संख्यक माने जाएँगे परंतु भारत के मुस्लिम 15% से भी ऊपर है  और वे अल्प संख्यक के अधिकारो की मलाई मार रहे है 2011 तो यह आबादी 18% को भी पार कर जाएगी ..... 
  3. पहले ईरान भारत से अलग हुआ फिर.... अफगानिस्तान 1761 मे अलग हुआ .... फिर 1947 को पाकिस्तान बना ... फिर 1971 को बांग्लादेश अभी कश्मीर बंगाल और उत्तर पूर्वी राज्यो को मिलकर के मुगलिस्तान बनाने और केरल के रूप मे एक ईसाई देश बनाने की तैयारिया ज़ोर शोर से चल रही है .... आप नींद लेते रहिए   
  4. भारत मे अलग अलग आचार संहिताए है क्या किसी सेकुलर देश मे ऐसा हो सकता है ?
  5. हज यात्रा के लिए सरकार अरबों की सबसिडी देती है ऐसा लगता है जैसे संविधान / सरकार को अल्लाह पर ही अधिक भरोसा है 
  6. हज यात्रा मे खर्च होने वाले पैसे को (आकार विवरणी, I-TAX) दिखाने की आवश्यकता नहीं जबकि मानसरोवर यात्रा पर सबसिडी तो दूर खर्च होने वाले पैसे को विदेश यात्रा पर हुआ खर्च माना जाता है ( जैसे हिन्दू शिवजी की पूजा करने नहीं वहाँ पीक निक मनाने गए थे और मुल्ले अल्लाह से मिलने हज मे इसलिए भदभाव )
  7. अव्यवस्था के नाम पर केवल हिन्दू मंदिरो का अधिग्रहण किया जाता है क्या किसी अन्य मतावलंबियों के पूजा स्थल पर अव्यवस्था नहीं होती क्या एक भी चर्च या मस्जिद का अधिग्रहण किया गया है सरकार के द्वारा आजतक ? इन अधिग्रहित मंदिरो का राजनीतिक उपयोग चढ़ावे के पैसे का मनमाना उपयोग किया जाता है एक राज्य मे तो हज यात्रा की सबसिडी के लिए इस राशि का उपयोग किया जाता है (हिन्दू न चाहते हुए भी अपने पैसे पर मुल्लों को हज भेजे )
  8. हिन्दुओ के personal Code मे बार बार परिवर्तन होता है व हिन्दू प्रगतिशील होने के कारण स्वीकार भी करता है जबकि मुस्लिम इसाइयों के Personal Codes को छेड़ने तक की हिम्मत नहीं है सरकार मे फिर भी हिन्दू को कट्टरवादी कहते है
  9. जिन मुसलमानों ने भारत पर लगभग 1000 वर्ष राज किया बहू बेटियों को भोग और प्रचार प्रसार की वस्तु माना उनको सरकार ने पिछड़ा माना और इसी आधार पर राजेंद्र सच्चर (खच्चर) कमेटी बनाई मुस्लिमो को आरक्षण देने के लिए जो वास्तव मे भारत के एक और विभाजन की नींव तैयार कर रही है मतलब इस्लाम का एक और देश शायद अब की बार हम ईसाइयो को नया गिफ्ट देंगे कोई केरल को ईसाई बनाकर
  10. सऊदी अरब के आदेश को स्वीकार करके क्यों एक मुसलमान को ही वहाँ का राजदूत बनाया जाता है ऐसे ना जाने कितने यक्ष प्रश्न है जो हम पूछते है क्या भारत एक सेकुलर देश है 
  11. जम्मू कश्मीर मे आजतक कोई हिन्दू मुख्य मंत्री नहीं बना जबकि ऐसा मौका आया था लेकिन वहाँ की जनता के दबाव के कारण यह संभव नहीं हो सका..... हम उस इस्लाम वाली जनता को साल भर 19 हजार करोड़ की खैरात मुफ्त मे बाटते है जबकि हमारे किसान भूख के मारे आत्म हत्या कराते है कभी सुना है किसी कश्मीरी को आत्म हत्या कराते हुए भूख के मारे ?  
  12. कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की देश मे से अल्प संख्यक शब्द खत्म होना चाहिए अन्यथा यह भारत को एक और विभाजन की और ले जाएगा 
  13. न्यायपालिका बार बार यह आदेश देती है की धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता परंतु कॉंग्रेस बार बार इन नियमों की धज्जिया उड़ाती रही है और कोशिश आगे भी जारी है, विनोद दुआ जैसे सेकुलर राक्षस ऐसे मामलों मे गहन बहस नहीं करते है उन्हें गोधरा के दंगे मे मुस्लिम असहाय दिख जाते है लेकिन मुजरिम / षड्यंत्र कारी मुस्लिम नहीं....   
  14. उड़ीसा मे मतांतरण कर रहे पादरी स्टेंस की हत्या के केस मे उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा की धर्मांतरण किसी का अधिकार नहीं बलपूर्वक धोखे से धर्मांतरण गैर कानूनी है परंतु सेकुलर वादी धर्मांतरण के गैर कानूनी काम का समर्थन कराते है धर्मांतरण का विरोध करने वालों को सांप्रदायिक कहा जाता है 
  15. मकबूल फिदा हुसेन 'इस्लामिक' कलाकार ने देवी देवताओ और भारत माँ के नंगे चित्र बनाए जिन देश भक्तो ने उसका विरोध किया तो उन्हें सेकुलरों और भ्रष्ट मीडिया ने सांप्रदायिकता कह दिया है और कहा की यह अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर हमला है लेकिन जब पैगंबर मोहम्मद के चित्रा डेन्मार्क मे छपे तो भारत मे हर जगह पर हिंसक प्रदर्शन हुए उस समय इन्हीं सेकुलरों और मीडिया ने कहा की इनका गुस्सा जायज है किसी भी धार्मिक भावना से खिलवाड़ उचित नहीं 
 

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