शनिवार, सितंबर 03, 2011

पहली मुलाकात में उस व्यक्ति को 2500/- रुपये दिये जाते हैं, मंदिर नहीं जाने, माथे पर तिलक नहीं लगाने के लिए !

पहली मुलाकात में उस व्यक्ति को 2500/- रुपये दिये जाते हैं, मंदिर नहीं जाने, माथे पर तिलक नहीं लगाने के लिए !

 एक ईसाई संगठन है जिसका नाम है “न्यू लाईफ़ वॉइस” (वेबसाईट http://www.newlifevoice.org/default.asp यह है)। यह संगठन विदेशी पैसों पर चलने वाला एक मिशनरी केन्द्र है। कर्नाटक में इस संगठन की शुरुआत वीएम सैमुअल और उनकी पत्नी सोमी ने सन् 1983 में शुरु की थी, इस संगठन ने 1987 तक मंगलोर में काम किया फ़िर इसका मुख्यालय बंगलोर में स्थानान्तरित किया गया। इस संगठन का मुख्य काम ईसाई धर्म का प्रचार करना और प्रभु यीशु का गुणगान करना है। दक्षिण भारत में इस संगठन ने कई चर्चों की स्थापना की है। इनके लोग मंगलोर में विभिन्न ठिकानों (बस स्टैण्ड, रेल्वे स्टेशन, अस्पताल आदि) पर खड़े होकर अपना प्रचार करते हैं। इसके स्वयंसेवक ग्रामीणों और अनपढ़ लोगों को चर्च के फ़ादर से “मिलवाने”(?) ले जाते हैं। पहली मुलाकात में उस व्यक्ति को 2500/- रुपये दिये जाते हैं तथा उसे वेलनकन्नी आश्रम (तमिलनाडु) में ले जाया जाता है, जहाँ उसे 3000/- रुपये और दिये जाते हैं। यदि वह व्यक्ति पूरी तरह से ईसाई बन जाता है और नाम भी बदल लेता है तो उसे Incentive के रूप में और 10,000/- रुपये दिये जाते हैं। इस प्रकार एक MLM चलाने वाली कम्पनी की तरह Incentive की लड़ी तैयार की जाती है (यानी कि यदि एक व्यक्ति किसी अन्य दो अन्य व्यक्तियों को ईसाई बनाये तो उसे बोनस मिलेगा, इस प्रकार “चेन” चलाई जाती है)। शुरुआत में माथे से तिलक हटाने, मन्दिरों में न जाने और घरों में यीशु की तस्वीरें लगाने के छोटे Incentive होते हैं।

यहाँ तक तो किसी तरह वहाँ के हिन्दू अपना गुस्सा दबाये रहे, लेकिन इस संगठन ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम रखा गया “सत्य दर्शिनी”, और इस बुकलेटनुमा पुस्तक को बड़े पैमाने पर गाँव-गाँव में वितरित किया गया। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद लोग भड़क गये और यही इन दंगों का मुख्य कारण रहा (जो कि सेकुलरों को नहीं दिखाई देगा), पेश हैं इस पुस्तक के विवादास्पद अंशों का अनुवाद –

1) “…इन्द्रसभा की नृत्यांगना उर्वशी विष्णु की पुत्री थी, जो कि एक वेश्या थी…”
2) “…गुरु वशिष्ठ एक वेश्या के पुत्र थे…”
3) “…बाद में वशिष्ठ ने अपनी माँ से शादी की, इस प्रकार के नीच चरित्र का व्यक्ति भगवान राम का गुरु माना जाता है…” (पेज 48)
4) “…जबकि कृष्ण खुद ही नर्क के अंधेरे में भटक रहा था, तब भला वह कैसे वह दूसरों को रोशनी दिखा सकता है। कृष्ण का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद रहा था। हमें (यानी न्यूलाईफ़ संगठन को) इस झूठ का पर्दाफ़ाश करके लोगों को सच्चाई बताना ही होगी, जैसे कि खुद ब्रह्मा ने ही सीता का अपहरण किया था…” (पेज 50)
5) “…ब्रह्मा, विष्णु और महेश खुद ही ईर्ष्या के मारे हुए थे, ऐसे में उन्हें भगवान मानना पाप के बराबर है। जब ये त्रिमूर्ति खुद ही गुस्सैल थी तब वह कैसे भक्तों का उद्धार कर सकती है, इन तीनों को भगवान कहना एक मजाक है…” (पेज 39)। 

यह तो एक झलक भर थी, इस प्रकार के दुष्प्रचार लगातार किये गये और हिन्दू संगठन भड़क गये और उन्होंने चर्चों में तोड़फ़ोड़ शुरु कर दी। इसके बाद तमाम अन्य ईसाई संगठनों ने बयान जारी करके कहा कि हमारा “न्यूलाईफ़ फ़ाऊंडेशन” से कोई लेनादेना नहीं है, और धर्मांतरण करवाने वाले संगठन कोई और हैं और इसमें “चर्च” का कोई हाथ नहीं है। लेकिन ये सब “मुखौटे” वाली बातें हैं। सभी जानते हैं कि सच्चाई क्या है। गत कुछ वर्षों में, (खासकर सुनामी के बाद) तमिलनाडु के तटीय इलाकों में रामेश्वरम से लेकर कन्याकुमारी तक के गाँवों में ईसाईयों का जनसंख्या 2 प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत तक हो गई है। जब उड़ीसा में एक निहत्थे और 84 वर्ष के बूढ़े स्वामी जी की हत्या की जाती है तब कोई “सेकुलर” या कोई “मानवाधिकारवादी” आगे नहीं आता, जब वाराणसी, अहमदाबाद में बम विस्फ़ोट होते हैं तो चैनलों पर गुहार लगाई जाने लगती है कि इसे “मुस्लिम आतंकवाद” का नाम न दिया जाये, आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता… आदि। लेकिन जब कर्नाटक और उड़ीसा में हिन्दू भड़कते हैं तो तत्काल उन्हें “हिन्दू संप्रदायवादी”, “बजरंग दली” घोषित कर दिया जाता है।

सिमी से “बैलेंस” बनाये रखने के लिये बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है, जबकि यदि सिमी या अल-कायदा जितनी “ताकत” वाला एक भी हिन्दू संगठन भारत में होता तो उनकी इधर देखने की भी हिम्मत नहीं होती थी, असल में हिन्दुओं के लगाये हुए बम नकली और फ़ुस्सी टाइप के होते हैं (जैसा कि ठाणे के गड़करी नाट्यगृह में लगाये हुए थे, या कि जैसे कानपुर में बरामद हुए थे)। हिन्दू अपने बहुसंख्यक (90 करोड़ से ज्यादा) होने पर ही इतराते रहते हैं, लेकिन हकीकत में हिन्दुओं के घर में “ढंग का” एक भी हथियार नहीं मिलेगा, ज्यादा से ज्यादा एकाध लाठी मिल जायेगी या सब्जी काटने वाला चाकू, बस… अहिंसा-अहिंसा का जाप करते रहो और कश्मीर से लेकर असम तक जूते खाते रहो, इस देश को कांग्रेस ने यही दिया है। दंगों के एक भुक्तभोगी का यह बयान आँखें खोलने वाला है कि यदि पुलिस हिन्दुओं की मदद न करे तो इस देश में हिन्दू लोग गाजर-मूली की तरह काटे जायें…

अब आते हैं उस बात पर कि क्यों कर्नाटक और उड़ीसा को एक ही तराजू में रखकर तौला जा रहा है, जबकि उड़ीसा में हालत काफ़ी गम्भीर है तथा कर्नाटक में बेहद छुटपुट। यहाँ पर बात है ईसाईयों में भी प्रचलित वर्गभेद की… कंधमाल में जिनके खिलाफ़ हिंसा हो रही है वह धर्मांतरित हुए आदिवासी हैं, जिनका दर्जा चर्च में “नीचा” होता है, जबकि मंगलोर में जिनके खिलाफ़ हमले हुए हैं वे उच्च वर्ग के ईसाई हैं, जिनकी चिंता में फ़्रांस के राष्ट्रपति भी दुबले होते हैं और बुश भी। इन दोनो राज्यों में ईसाईयों का असली चेहरा सामने आ जाता है, असल में उड़ीसा में जब बात बहुत आगे बढ़ गई तभी हल्ला मचाया गया, क्योंकि वहाँ गरीब और दलित ईसाई हिंसा के शिकार हुए, लेकिन ऑस्कर फ़र्नांडीस, मार्गरेट अल्वा जैसे ईसाईयों की कर्मभूमि होने के कारण मंगलोर की मामूली सी घटनाओं को बेवजह तूल दिया गया। सोनिया गाँधी को खुश करने के लिये लगातार धारा 356 की धमकी दी जा रही है, जबकि कर्नाटक से ज्यादा हिंसा की घटनायें तो हाल में अमरावती, धुळे और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में हो चुकी हैं, और इस सबके बीच में कर्नाटक में हाल ही में करारी हार से भी कांग्रेसी तिलमिलाये हुए हैं, उन्हें येदियुरप्पा बिलकुल नहीं सुहा रहे। हालांकि येदियुरप्पा ने त्वरित कार्रवाई करते हुए हिन्दू संगठनों पर लगाम कसने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा के अन्य नेताओं के मुकाबले येदियुरप्पा में ही “दूसरा मोदी” बनने की क्षमता है।

 अन्त में यही बात बार-बार उभरती है कि ऐसी घटनाओं के लिये हिन्दू भी उतने ही जिम्मेदार हैं, 80-90 करोड़ होने के बावजूद वे एकत्रित नहीं होते, कांग्रेस, सेकुलर और अल्पसंख्यक मिलकर उन्हें दबाते जाते हैं, कश्मीर-असम में पाकिस्तानी झंडे लहराये जा रहे हैं और वे असहाय से देख रहे हैं, केन्द्रीय मंत्री सिमी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं, सेकुलर मीडिया अपना दुष्प्रचार लगातार चलाये हुए है, कोई कुछ नहीं बोलता, एक गहरी निद्रा में सोये हैं सब… हिन्दुओं के पास दिमाग है, पैसा है, ज्ञान है… सिर्फ़ एकता नहीं है। इस गहरी नींद से यदि समय रहते नहीं जागे तो मिशनरीकरण, अमेरिकीकरण, वामपंथीकरण और इस्लामीकरण की ताकतें मिलकर एक दिन सब कुछ खत्म कर देंगी… पहले ही बहुत देर हो चुकी है, अब और देर मत करो… जागो और एक बनो।

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संदर्भ: सुरेश चिपलूंकर

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