जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।
शाहजहाँ प्रेम की मिसाल के रूप पेश
किया जाता रहा है और किया भी क्यों न
जाय ,८००० ओरतों को अपने हरम में रखने
वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए
तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। मुमताज के
बाद शाहजहाँ ने अगर किसी को टूट कर
चाहा तो वो थी उसकी बेटी जहाँआरा।
जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार
करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न
दिया। धिक्कार है ऐसे इतहास्कारों पर जिन्होंने
जहानारा को शाहजहाँ की रखेल बताया।
बेटी और रखैल ,तोबा तोबा किसने कह दिया?
वो तो अब्बू का प्यार था। बाप के इस प्यार
को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई,
तो मुल्ला मोलवियों ने एक हदीस का उद्धरण देते
हुए कहा कि माली को अपने द्वारा लगाये पेड़
का फल खाने का हक़ है।
शाहजहाँ की बात छोड़िये ,पैगम्बर तो आम इंसान
नहीं थे। बेटे की पत्नी भी पुत्री के सामान
होती है।पैगम्बर ने भी अपने मूह बोले बेटे जैद
की पत्नी जैनब को इतना प्यार किया कि उससे
निकाह ही कर लिया।
अब इसी बाप बेटी के प्यार का खुमार
मुसलमानों पर न चढ़े ,एसा कैसे हो सकता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें