सोमवार, दिसंबर 26, 2011

गाँधी अन्ना और "वो "

गाँधी अन्ना और "वो "

कई बार ज़हन में एक सवाल उठता है की ऐसा क्यों हुआ आज़ादी की लडाई को प्रारंभ करने वाले क्रन्तिकारी अनशन और अहिंसा को अपना कर ज्यादा समय तक जीवित क्यों नहीं रहे ? अल्प आयु में ही देश के लिए प्राणों का बलिदान क्यों कर दिया ? आज़ादी के संग्राम के शुरुवाती दिनों में शहीद मंगल पांडे एक बड़ा उधारण है , मेरे पिताजी दो पंक्तिया बहुत दोहराया करते थे किसकी लिखी पंक्तिया थी नहीं जानता मगर जहन में सदैव बनी रहती है " कातिल ने कत्ल कर कर आस्तीन पोछ ली , कातिल को क्या पता था लहू बोलता भी है ? " मुझे मेरी शंका का समाधान इन पंक्तियों के द्वारा खुद से ही मिल जाता है |

मैं आज भी जब कभी कांग्रेस रचित इतिहास की कोई पुस्तक देखता हूँ ना जाने क्यों मुझे अपने खुद से नफरत सी होने लगती है की मैंने उन किताबो को पढ़ा है जिन में उन शहीदों से अधिक महत्व उन लोगो को दिया गया जिन्होंने अपनी कायरता भरी अहिंसा के लिए लाखो लोगो को मरवा दिया बाबजूद इसके उनका महिमा-मंडन " दे दी हमे आज़ादी बिना खडग बिना ढाल " जैसे शब्दों से किया जा रहा है |

अंग्रेजो के शासनकाल की और देखे तो अंग्रेजो ने हर उस क्रांतिकारी आन्दोलन की अलख जगाने वाले प्रमुख व्यक्ति को खत्म कर दिया या काले पानी की सजा में यातनाये दे दे कर मार दिया या लाचार कर दिया ,इसके अलावा जेलों में सडा दिया गया 1857 जैसी क्रांति के नायक शहीद मंगल पांडे हो या वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जी तात्या टोपे हो या कानदास महेडु या समय समय पर क्रांति की अलख जगाने वाले खुदी राम बोस हो या प्रफुल चंद चाकी , लाला लाजपत राय जी हो या चंद्रशेखर आज़ाद जी , शहीद भगत सिंह हो या अन्य साथी ,सब के साथ एक सा सलूक किया गया उनको खत्म कर दिया गया,आज शहीद राजगुरु का जन्मदिवस तक भुला दिया गया क्या गाँधी का जन्मदिवस भुला सकती है देश की जनता और सरकार और संस्थाए ? गंधासुर गाँधी , जवारुद्दीन जवाहर लाल नेहरू जैसे तथाकथित अहिंसा के पुजारी अनगिनत आन्दोलन होने के बाबजूद भी जेल में ज्यादा समय बंद नहीं रह पाए उनके ज्यादातर अनशनों में होने वाले लाठीचार्ज और गोलियों की रगड़ उनको कभी छु कर नहीं गयी जेलों में उनको कभी टीबी की बीमारी नहीं हुयी जंहा शहीद भगत सिंह को जेल में अच्छे खाने के लिए, पढने के लिए पुस्तक और अखबार के लिए जेल में ६४ दिन तक भूख हड़ताल की यंहा तक उनका एक जाबाज साथी शहीद यतीन्द्रनाथ दास उस दौरान पानी ना मिलने की वजह से चल बसे | क्या गांधी के अनशन इस अनशन से बड़े थे ? और गाँधी को पुस्तके लिखने पढने और खाने के लिए सदैव अच्छा भोजन क्यों मिलता था ? अभी टीवी पर एक खबर में गाँधी का एक वीडियो जिसमे उन पर जज द्वारा १०० रुपये का जुर्माना डाल कर जमानत देने की बात कही मगर गाँधी ने मना कर दिया इसके बाबजूद भी अंग्रेज जज ने उन्हें छोड़ दिया जबके अंग्रेजो ने तो छोटे छोटे बच्चो पर भी कोड़े बरसाए थे उनको यातनाये दी थी | यदा कदा अंग्रेजो ने गाँधी के अनशन में विध्न डाली लाठी चार्ज किया किन्तु गाँधी स्वयं बचते रहे वो भी हर बार मैंने किस्मत का इतना धनी व्यक्ति कभी देखा सुना नहीं ? ये उनकी किस्मत थी या अंग्रेजो से मिलीभगत की वो और नेहरू आज़ादी मिलने तक अंग्रेजो के यंहा बैठक करते रहे जबकि क्रांतिकारी १८५७ से लेकर तथाकथित आज़ादी मिलने तक शहीद होते आये जलियावाला बाग़ आज भी भारतवाशियों के खून से लाल है मेरे दादाजी ने भी अपने दो भाई इस अहिंसक क्रान्ति की हिंसा में खो दिए थे बाबजूद इसके आज़ादी बिना खडग बिना ढाल के मिली है ये आज भी जोर शोर से गया जा रहा है और इस समूची तथाकथित आज़ादी का एक मात्र नायक केवल गाँधी को दर्शाया जा रहा है कितना उचित है ? ||

हाल के दिनों में जो देश में परिस्थिथि है वो अहिंसा के पुरस्कार स्वरुप मिली है हम आज १२६ करोड़ की जनसँख्या का हिस्सा है आज देश में करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये रह रहे है , सिर्फ रह नहीं रहे है यंहा आतंक भी फैला रहे है चोरियां भी कर रहे है लुट भी कर रहे है मजदूरी भी कर रहे है इसके अलावा १० लाख से अधिक पाकिस्तानी है जो वीजा लेकर आये थे वापस ही नहीं गए हमारी देश की गुप्तचर संस्थाए इन के बारे में आज तक पता नहीं लगा पाई क्योकि ज्यादातर लोगो ने पैसा देकर राशन कार्ड बना लिए ,शादी कर ली घर बसा लिए हम जैसे दीखते है और सरकार का वोट बैंक भी इनकी पहचान हो जाने से खतरे में पड़ जाता है , तो कोई आवश्यकता ही नहीं है गुप्तचर संस्थाओं को इनको ढूंढने की ? इनको वापिस भेजना तो और भी मुश्किल है क्योकि ना तो पाकिस्तान इन्हें अपना मानेगी ना बंगलादेश . इसके अलावा अहिंसा की मिसाल पेश करते हुए बीएसऍफ़ (बोर्डर सिक्योर्टी फ़ोर्स ) को एक सरकारी फरमान भी जारी किया गया है की बंगलादेशी घुसपैठियों पर गोली ना चलायी जाये, उनको कोई नुक्सान पहुचाया जाए इसको कहते है अहिंसा के सिद्धांत ||

आज वर्तमान में देश में अनशन यानी गांधीवाद की लहर चल रही है,,, वाद कोई भी हो घातक होता है वो चाहे सम्प्रदायवाद हो , जातिवाद हो , क्षेत्रवाद हो अलगाववाद हो,माओवाद हो ,नक्सलवाद हो या गांधीवाद लेकिन इन सबमे देश को दीमक लगायी है तो गांधीवाद ने ,,
-सम्प्रदायवाद को हिन्दुओं तक सिमित कर दिया गया पूछना चाहूँगा इसाई क्या सम्प्रदाय नहीं है ? मुस्लिम धर्म (इस्लाम ) क्या सम्प्रदाय नहीं है ? लेकिन भारत में गांधीवादियों ने साम्प्रदायिक सिर्फ हिन्दुओं को माना है आज तक |

-जातिवाद की आग सदियों से फैली हुयी है इसको खत्म करने की वजह गांधीवादियों ने आरक्षण की आग लगा दी जो अब भी जल रही है जिसने प्रतिभा को खत्म कर जाति को योग्यता का प्रमाण दे दिया है |

-अलगाववादी कश्मीर की मूल समस्या है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने इनको एक लम्बी आयु का वरदान दे दिया था और साथ में ही इनको अधिकार दे दिया था की ये जब चाहे आग उगलते डायनासोर बन सकते है आज कश्मीर घाटी अलगाववादियों के कारण जल रही है |

-इसी प्रकार माओवाद नक्सलवाद अपने हक हकूक की आवाज के लिए बना, किन्तु गांधीवाद के कारण आज वो देश की सबसे बड़ी समस्या बन गया है उनको उनके अधिकार देने की वजह उनसे शांति वार्ता का दिखाबा कर कर के उनके हाथो हमने अपने सेकड़ो सैनिक खो दिए है लेकिन आज जब हम जानते है की नक्सलवाद को मदद विदेशी ताकते दे रही है तब भी हम गाँधी के तीन बन्दर बने हुए है ||

-देश में सन २०११ अनशनो के लिए जाना जाएगा चाहे सांकेतिक अनशन हो या अभी तक चल रहा अन्ना हजारे का अनशन , जून की रात को बाबा रामदेव जी द्वारा चलाये जा रहे गांधीवादी अनशन ने गांधीवाद की पोलएक बार फिर खोल दी शांतिपूर्वक तरीके से चलाया जा रहा अनशन अचानक जलियावाले बाग़ की दुर्दंता सा दिखने लगा विश्व के सबसे बड़े आतंकवादी बाबा रामदेव को पकड़ने आये पुलिस वाले अनशन का दमन करने पर उतारू थे गांधीवादियों के सिद्धांतो की दुहाई देनी वाली खान्ग्रेस सरकार सुबह तक का इंतज़ार नहीं कर पायी उसके तुगलकी फरमान से क्या बच्चे ,क्या बूढ़े ,क्या जवान, क्या बहने ,क्या माताए सब इधर उधर लाठियां खा रहे थे भाग रहे थे कई लोग घायल हो गए एक बहिन आज भी कोमा में है ||

लेकिन एक अनशन और होता है अन्ना हजारे का १६ अगस्त २०११ को शुरू होने वाले अनशन वाले दिन सुबह बजे पुलिस अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर लेती है अचानक देवदूत की तरह १५०० के करीब लोग पहुच जाते है और हंगामा करने लग जाते है, सड़क पर लेट जाते है, और पुलिस से झड़प करते है लेकिन पुलिस उनसे ऐसे पेश आती है जैसे सास ससुर अपने दामाद से , ये खबर टीवी के माध्यम से ऐसे प्रसारित की जाती है जैसे फिर कोईहवाई जहाज हाई जेक कर कर कंधार ले जाया गया हो , दिन भर की मशकत के बाद अन्ना को तिहाड़ ले जाया जाता है पूरा भारत जानता है राजनैतिक गिरफ़्तारी एक या अधिकतम दो दिन की होती है लेकिन अन्ना को दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है जो सरकार के नुमाइंदे शाम तक अन्ना की गिरफ़्तारी को पुलिस का अधिकार क्षेत्र बता रहे थे वो नुमाइंदे अन्ना को रात में ही छोड़ने का फरमान ये कहकर जारी करते है की रौल विन्ची उर्फ़ राहुल गाँधी नहीं चाहते अन्ना जेल में रहे खैर अन्ना इस प्रस्ताव को भी ठुकरा देते है और अपनी मांग पर अड़े रहते है उनकी मांग उनको अनशन स्थल की व्यवस्था करके देना थी ये मांग दिन बाद पूरी होती है और बदले में वो रामलीला स्थल दिया जाता है जंहा जून की काली रात को पुलिसिया तांडव हुआ था और आदालत में और मिडिया में कारण रामलीला मैदान में केवल ५००० लोगो के लिए जगह होने की बात , चांदनी चौक क्षेत्र में दंगे भड़कने की बात , बाबा रामदेव को जान का खतरा होने की बात कही गयी |

- रामलीला मैदान जून को सुबह से ही हज़ार के करीब जवान तैनात थे जो रात में हज़ार से भी अधिक हो गए थे फिर जब जगह केवल हज़ार लोगो के लिए थी तो एक महा पहले से टीवी और पोस्टर के माध्यम से बाबा रामदेव लाख लोगो के साथ अनशन की बात कर रहे थे तो उनके दिल्ली पहुचते ही सरकार के चार चार मंत्री उनको हवाई अड्डे लेने क्यों पहुच उनको भी अन्ना की तरह अनशन से पहले गिरफ्तार क्यों नहीं किया ?

-यदि चांदनी चौक में दंगे भड़कने का डर था तो जब रामलीला मैदान में धार्मिक आयोजन होते है अन्य आयोजन होते है तब क्यों नहीं दंगा भड़कने का डर होता है ?

-यदि बाबा रामदेव को जान का खतरा था तो रात के .३० बजे उनको गिरफ्तार करने की आवश्यकता क्या आन पड़ी थी क्या दिल्ली पुलिस के हज़ार जवान बाबा को सुरक्षा देने में असमर्थ थे ? और क्यों नहीं बाबा रामदेव को दिल्ली पुलिस ने अन्ना की तरह तिहाड़ भेजा यदि अन्ना ने कानून का उलंघन किया था तो बाबा ने तो उससे बड़ा अपराध किया था हज़ार की जगह एक लाख की भीड़ रामलीला मैदान में इकट्ठी करने का अपराध फिर क्यों दिल्ली पुलिस ने उनको विशेष जहाज से देहरादून भेजा और १५ दिन तक दिल्ली आने पर रोक लगायी , यदि अन्ना को भी दिल्ली से बाहर भेज कर दिल्ली में आने पर रोक लगा दी जाती तो आज अनशन में अन्ना सोनिया , प्रधानमंत्री और राहुल से ही मिलने की बात क्यों करते ? गाँधी के अनशनो में जिस तरह की साजिस की बू आती है उसी तरह ये अनशन भी दाल में कुछ काला है की और इशारा कर रहा है | ये गांधीवादी और खान्ग्रेसी एक ही थाली के चट्टे बट्टे है इनके लिए लहू बहाने वाले संघ और भाजपा का चेहरा है , माँ भारती का चित्र साम्प्रदायिक है अलगाववादी ,नक्सलवादियों का समर्थक सेना के खिलाफ षड्यंत्र रचने वाला बाबा अमरनाथ यात्रा को ढोंग बताने वाला कामी अग्निवेश महात्मा है , घाटी में सैनिको और सुरक्षाबलों की कार्यवाही को गलत बताने वाले शांति भूषण और प्रशांत भूषण जो कई आतंकियों के बचाव में केस लड़ चुके है वो पिता पुत्र देश भक्त है |

चूँकि विदेशी और सरकारी अनुदान से चलने वाले एनजीओ जिसे ,मेधा पाटेकर , अरुंधती राय ,तीस्ता जावेद सीतलवाड़, किरण बेदी आदि अन्ना सहयोगी भी चलाते है इसलिए अन्ना टीम ने एनजीओ को जनलोकपाल के दायरे से अलग रखा है और सरकार जनप्रतिनिधियों की इस मांग को की एनजीओ को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए सिरे से उस तरह ख़ारिज कर दिया है जैसे गंधासुर गाँधी ने पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुँपये ना देने की जनता जनप्रतिनधियों की मांग को ख़ारिज कर दिया था विगत रहे अन्ना भी एक एनजीओ चलाते है यानी दाल यंहा भी काली है ||

क्या गाँधीवादी असूल केवल विपदाओं को पैदा करने के लिए है या उसके हल के लिए जनलोकपाल, राज्यों में लोकायुक्त और समस्त छोटे बड़े कर्मचारियों के १५००० सदश्यों का एक नया समूह बनेगा क्या आप भारत में एक ही विभाग में इतने बड़े पैमाने पर ईमानदार व्यक्ति की कामना कर सकते है यदि हाँ तो गांधीवादियों एक और विभाग काम कराने के लिए रिश्वत देने को तैयार हो जाओ क्योकि १२६ करोड़ लोगो को अब जनलोकपाल इन्साफ दिलाने आएगा ||

शेर अपना शिकार मार कर खाता है क्योकि वो हिंसक है और लड़ना जानता है ये प्राकर्तिक रूप से नियम है किन्तु हमारे लिए एक सीख है, क्योकि हम शिकार है क्योकि हम कायर है जो भाग भाग कर थक जाने पर समर्पण कर देता है और मार दिए जाते है लुट लिए जाते है लेकिन प्रतिरोध नहीं करते क्योकि हम अहिंसक है गांधीवादी है ||



गिद्ध मरा हुआ ही शिकार खाता है क्योकि मरे हुए इंसान में प्रतिक्रिया नहीं होती ठीक हमारी तरह ||

संभल जाओ नहीं तो काल का ग्रास बन जाओगे या फिर धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जाओ क्योकि गांधीवादी ला रहे है हिन्दुओं के लिए साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा (न्याय एवं क्षतिपूर्ति ) विधेयक २०११ नामक काला कानून ||

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