वह समय था 15 सितम्बर की सुबह के लगभग 11 बजे का और जगह थी दिल्ली में यमुना किनारे मजनूं का टीला स्थित डेरा बाबा धुनीदास। खुले आसमान के नीचे जमीन पर पतली-सी चादर बिछाकर कुछ महिलाएं लेटी हुइ थीं, कुछ अपने बच्चों को नहला रही थीं, तो कुछ बरसात में गीली हो चुकीं लकड़ियों को जलाने का प्रयास कर रही थीं ताकि खाना पकाया जा सके। और भूख से बिलबिलाते नंग-धड़ंग कुछ बच्चे कभी उस मिट्टी के चूल्हे के पास जा रहे थे, जिससे केवल धुआं निकल रहा था, तो कभी अपनी-अपनी मां के पास जाकर खाने की मांग कर रहे थे। किंतु उन माताओं के पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था। एक बच्चा अपनी मां से खाना मांगे और वह उसे खाना न दे पाए उसके लिए व्ससे बड़ी बद- किस्मती और क्या होगीइ
ऐसे लगभग 600 महिला-पुरुष और बच्चे 9 सितम्बर को पाकिस्तान से भारत आए हैं। व्नमें से 114 दिल्ली में हैं। ये सभी हिन्दू हैं और पाकिस्तान में कट्टरवादियों के बर्बर अत्याचारों को वर्षों से सहते रहे हैं। अपनी बहू-बेटियों की व्ज्जत की रक्षा, जान की सुरक्षा और अपने सनातन धर्म को बचाने के लिए ये लोग वर्षों से भारत आने के लिए वीजा मांग रहे थे। पिछले दिनों व्न लोगों को बमुश्किल पर्यटक वीजा मिला और ये भारत आ गए। व्न गरीब हिन्दुओं के पास न तो खाने के लिए अन्न है, न पहनने के लिए वस्त्र। व्न सबके लिए खाने, रहने आदि की व्यवस्था स्थानीय हिन्दुओं की मदद से बाबा डेरा धुनीदास ने की है। सामाजिक संस्था सेवा भारती ने भी व्न बेचारों के लिए खाद्य सामग्री और दवा आदि भेजी। कुछ अन्य सेवाभावी बन्धु भी उनकी मदद कर रहे हैं। व्सलिए फिलहाल व्न्हें ठहरने और खाने की, चिंता नहीं है। चिंता है तो सिर्फ वीजा अवधि की, क्योंकि वीजा केवल 35 दिन के लिए है।
व्सलिए ये सभी रात-दिन व्स उधेड़बुन में लगे हैं कि वीजा अवधि कैसे बढ़ावर्् जाए। वीजा अवधि क्यों बढ़ाना चाहते हैंइ भारत में क्यों रहना चाहते हैंइ व्सका जवाब 41 वर्षीय गंगाराम ने दिया, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ पशुओं से बदतर व्यवहार किया जाता है। वहां की अवाम हिन्दुओं के साथ पग- पग पर दुव्र्यवहार करती है। फरियाद लेकर पुलिस- प्रशासन के पास जाते हैं तो उलटे हिन्दुओं को ही मारा-पीटा जाता है। हमारी बहू-बेटी अकेली घर से निकल नहीं पाती हैं। बच्चों को स्कूल में व्स्लामिक शिक्षा दी जाती है। हम लोगों से खेतों पर दिन-रात काम करवाया जाता है। किंतु जायज मजदूरी नहीं दी जाती है। मांगने पर पिटावर्् करते हैं। घर और मंदिर में आग लगा देते हैं। व्तनी बुरी हालत में हिन्दू वहां हिन्दू के नाते नहीं रह सकता। हम लोग पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे। यदि भारत सरकार हमें यहां नहीं रखना चाहती है, तो गोली मार दे। हम लोग मरना पसंद करेंगे, पर पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे।'
गंगाराम न्यू हला, जिला-मटियारी, सिंध के रहने वाले हैं। व्नके परिवार में कुल 46 लोग हैं। घर के सभी पुरुष सदस्य, पाकिस्तान में मजदूरी करते थे और स्त्रियां डर से घर से बाहर नहीं निकल पाती थीं। ये लोग अपने बच्चों को स्कूल व्सलिए नहीं भेजते थे कि उन्हें व्स्लामी शिक्षा दी जाती थी। व्न्हें लगता है कि भारत में हिन्दू के नाते वे रह सकते हैं, और खुली हवा में सांस ले सकते हैं।
जब गंगाराम अपनी आपबीती बता रहे थे तब मिट्ठूमल्ल गुमसुम एक किनारे बैठे थे। कुछ पूछा तो उनकी आंखें डबडबा गइ। मिट्ठूमल्ल के साथ जो हुआ है उसे जानकर हर किसी का ह्मदय चीत्कार कर उठेगा। मिट्ठूमल्ल ने कहा, 'जिला सांघड़ के जामगोठ गांव में मेरा बड़ा सा घर था और 21 सदस्यीय परिवार के गुजारे के लिए जमीन भी थी। किंतु तीन साल पहले गांव के ही कट्टरवादियों ने हम पर एक झूठा आरोप लगाया और घर जला दिया। जमीन पर भी कब्जा कर लिया। जान बचाकर हम लोग गांव से निकल गए और दूर के एक जंगल में छुपकर रहे।
हम लोगों के पास न तो पैसा था और न ही खाने के लिए एक दाना। ऐसे हालात में जंगल में कब तक रहते। फिर भी भूखे-प्यासे हम लोग वहां कवर्् दिन रहे। जब भूख बर्दाश्त नहीं होने लगी तो अपने रिश्तेदारों के यहां गए। रिश्तेदारों ने ही मुकदमा करने को कहा। पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अब हमारा घर किस हालत में है, यह भी नहीं पता, क्योंकि फिर हम लोग कभी गांव नहीं लौट पाए। तीन साल का समय हम लोगों ने जंगल, सड़क के किनारे या किसी रिश्तेदार के यहां बिताया है। कुछ हिन्दुओं ने ही हम लोगों का वीजा बनवाया और अब हम लोग भारत आ चुके हैं। भारत सरकार से गुजारिश है कि वह हमें यहां शरण दे।'
हैदराबाद (सिंध) के अर्जुन दास अपने परिवार के 11 सदस्यों के साथ आए हैं। कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को सिर्फ खेतिहर मजदूर बनाकर रखा जाता है। मजदूरी भी व्तनी कम दी जाती है कि अकेले आदमी का भी गुजारा नहीं होता है। कुछ कहने पर कहा जाता है कि मुसलमान बन जाओ हर चीज मिलेगी। पाकिस्तान की कुल 25 करोड़ आबादी में 1 प्रतिशत भी हिन्दू नहीं रह गए हैं। हिन्दुओं को जबर्दस्ती व्स्लाम कबूलवाया जाता है। मंदिर तोड़ दिए जाते हैं। हम जैसे लोग किसी भी सूरत में अपने पूर्वजों के सनातन धर्म को नहीं छोड़ना चाहते हैं। व्सलिए सब कुछ छोड़कर यहां आए हैं। हिन्दुओं को सरकारी नौकरी में नहीं लिया जाता है। एकाध हिन्दू किसी सरकारी दफ्तर में काम कर रहा हो तो यह कोवर्् बड़ी बात नहीं है। सेना और पुलिस बल में तो हिन्दुओं को लिया ही नहीं जाता है।'
सिंध के हाला शहर से आए रामलीला कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को खुलकर सांस भी नहीं लेने दी जाती है। पड़ोसी मुस्लिम बहुत ही बारीकी से हिन्दुओं पर नजर रखते हैं। किसी हिन्दू त्योहार के आने से पहले ही चेतावनियां मिलने लगती हैं। चाहे होली, दीवाली, रामनवमी या कोवर्् अन्य त्योहार हो, कहा जाता है जो कुछ करो घर के अंदर करो। व्बादत की आवाज बाहर नहीं आनी चाहिए। शंख, घंटी आदि बजाना सख्त मना है। त्योहारों या अन्य किसी दिन हिन्दू जब मंदिर जाते हैं, तो मंदिर के बाहर मुसलमान खड़े रहते हैं और कहते हैं मंदिर क्यों जाते हो, मस्जिद जाओ। उनकी बात नहीं मानने पर हिन्दुओं पर हमले किए जाते हैं। घरों में आग लगा दी जाती है।'
हाला शहर के ही चंदर राय की उƒा सिर्फ 18 साल है और मोटर मैकेनिक हैं। कहते हैं, 'लोग गाड़ी ठीक करवाकर मुझे पैसे नहीं देते थे। कहते थे मुस्लिम बन जाओगे तो तुम्हारी सारी दिक्कतें खत्म हो जाएंगी। किंतु मैं अपनी जान दे सकता हूं, किंतु धर्म नहीं। पाकिस्तान में हिन्दुओं का कोवर्् भविष्य नहीं है। व्सलिए मैंने वहां शादी भी नहीं की। सोचा कि जब यहां मैं ही सुरक्षित नहीं हूं तो फिर शादी करके अपने बच्चों को व्स नरक में क्यों लाऊंइ पाकिस्तान में हिन्दू पैदा हो तो मुसीबत और मर जाए तो और बड़ी मुसीबत। यदि कोइ हिन्दू मर जाता है तो अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता है। मुसलमान कहते हैं मुर्दे को जलाने से बदबू आती है, व्सलिए उसे दफना दो। यही वजह है कि अपने किसी रिश्तेदार के मरने पर हिन्दू रो भी नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है कि यदि रोए तो पड़ोसी मुसलमान को पता लग जाएगा और फिर वे उसे दफनाने पर जोर देंगे। हम लोग अपने किसी मृत परिजन का अंतिम संस्कार चोरी-छुपे रात में कहीं सुनसान जगह पर करते हैं। शव को आग लगाने के बाद भाग खड़े होते हैं।'
डेरा बाबा धुनीदास के संचालक राजकुमार कहते हैं पाकिस्तान से आए व्न हिन्दुओं की हर तरह से मदद की जाएगी। उन्होंने हिन्दू समाज से भी कहा कि हिन्दुओं की सहायता के लिए खुलकर आगे आए। उनके व्स आह्वान पर ही कवर लोग व्न हिन्दुओं की मदद में लगे हैं। गंगानगर (राजस्थान) के इश्वरदास और फिरोजपुर (पंजाब) के डा.कृष्ण चन्द सोलंकी कागजी कार्रवाइ में व्न हिन्दुओं की सहायता कर रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता और दुनिया भर के हिन्दुओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले राजेश गोगना कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिन्दुओं को बचाने के लिए वहां अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक मंत्रालय बने। वहां हिन्दुओं को शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाए।' सेन्टर फार ह्रूमन राव्ट्स एण्ड जस्टिस के अध्यक्ष जगदीप धनकड़ ने कहा कि भारत व्स मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाए और विश्व बिरादरी में पाकिस्तान को बेनकाब करे। By Alok Gupta
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