बुधवार, जनवरी 18, 2012

कांग्रेस अब मुस्लिम आरक्षण के नाम पर फिर से इस देश को तोडना चाहती है .

कांग्रेस अब मुस्लिम आरक्षण के नाम पर फिर से इस देश को तोडना चाहती है .

वोट बैंक के लोभ में राजनीतिक दल संविधान से छेड़छाड़ करने के साथ-साथ किस तरह सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की हद तक भी जा सकते हैं, इसका शर्मनाक और खतरनाक उदाहरण है अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का निर्णय। इस निर्णय का मूल उद्देश्य अल्पसंख्यकों का कल्याण करना नहीं, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समाज के थोक रूप में वोट हासिल करना है। यही कारण है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अन्य पिछड़ा वर्गो के 27 प्रतिशत आरक्षण में से साढ़े चार फीसदी अल्पसंख्यकों को देने की घोषणा की गई। इस घोषणा के चंद घंटे पहले ही लोकपाल विधेयक में यह जानते हुए भी मजहब के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नत्थी किया गया कि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। यह अल्पसंख्यकवाद की पराकाष्ठा ही है, क्योंकि जब इस मुद्दे पर सवाल उठे तो यह कहा गया कि कोई प्रावधान संविधान सम्मत है या नहीं, यह तय करना हमारा काम नहीं। संभवत: इसी कुतर्क के प्रभाव में अल्पसंख्यक आरक्षण की भी घोषणा की गई। यह शायद दुनिया की पहली सरकार है जो यह जानते हुए भी संविधान विरोधी निर्णय ले रही है कि उसे न्यायपालिका खारिज कर सकती है। यदि केंद्र सरकार इस तथ्य से अनजान बने रहना चाहती है कि आंध्र प्रदेश सरकार के ऐसे ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ विचार कर रही है तो इसका सीधा मतलब है कि वोट बैंक के आगे उसे और कुछ सूझ नहीं रहा है।

अल्पसंख्यक अर्थात मुस्लिम आरक्षण पर न्यायपालिका विचार करे, इसके पहले चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर ध्यान देना होगा। विधानसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर पंथ के आधार पर आरक्षण प्रदान करना राजनीतिक कदाचार के अतिरिक्त और कुछ नहीं। जो चुनाव आयोग आचार संहिता लागू हुए बगैर राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर निगाह रख रहा है उसे केंद्र सरकार के इस फैसले पर मौन नहीं रहना चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि यह मजहबी आरक्षण लगभग एक हफ्ते बाद ही प्रभावी होने जा रहा है। यह चिंताजनक है कि देश जब मजहबी तुष्टीकरण राजनीति के दुष्प्रभाव से मुक्त हो रहा था तब कांग्रेस मजहबी तुष्टीकरण की खतरनाक राह पर चल निकली। कांग्रेस केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व अवश्य कर रही है, लेकिन उसे संविधान से परे जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। क्या यह वही कांग्रेस है जिसके नेता अभी कल तक यह दावा कर रहे थे कि यही वह एकमात्र पार्टी है जो जाति और मजहब के नाम पर राजनीति नहीं करती? अपनी अकर्मण्यता के कारण चौतरफा आलोचना से घिरी केंद्र सरकार खुद को बचाने के लिए जिस रास्ते पर चल निकली है वह देश को गंभीर संकट की ओर ले जा सकता है। देश को यह मंजूर नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए कि जबरन उसे विभाजन की खाई में धकेल दिया जाए। यह समाज और राष्ट्र के साथ धोखाधड़ी के अतिरिक्त और कुछ नहीं कि केंद्रीय सत्ता राज्यों की सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए यह साबित करना चाहती है कि देश में जो भी अल्पसंख्यक समुदाय हैं उन सभी की स्थिति अन्य पिछड़ा वर्गो जैसी है। इसमें दो राय नहीं कि अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़े तबकों की बदहाली दूर करने के उपाय किए जाने चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि उन्हें एक नए रूप में परिभाषित किया जाए और ऐसा करते समय न संविधान की परवाह की जाए और न ही सामाजिक ढांचे की।

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