चोरी, ऊपर से सीनाजोरी ? -- कुछ शर्म कीजिये
आयुर्वेद कितना पुराना है , ये अमरीका और ब्रिटेन को भले ही न पता हो लेकिन समस्त भारतवासी ये जानते हैं की आयुर्वेद , अथर्ववेद का एक उपवेद है जो सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रम्हा जी के मुख से निकला है ! समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों में से निकले धन्वन्तरी , जिनके नाम पर हम 'धनतेरस' मनाते हैं , को "Father of medicine" कहा गया है , तथा आचार्य सुश्रुत को "Father of surgery" कहा गया है !
सदियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों के पृष्ठ यदि पलटें जाएँ , तो आसानी से देखा जा सकता है उस समय की चिकित्सा एवं शल्य-क्रिया कितनी उन्नत अवस्था में थी ! लेकिन अफ़सोस है कि भारत एक 'ब्लैक-एज' के दौर से गुजरा है , जिस दौरान भारत कि धरोहर, अनेक ग्रंथों को चोरी कर लिया गया और अनेक ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया ! ये अमेरिका और ब्रिटेनवासी तो पक्के चोर हैं । इन्होने हमारे ग्रंथों को चुराया फिर उसमें लिखित एवं वर्णित बातों को अपने नाम से पेटेंट करते हैं!
सन २००१ में अमेरिका ने हमारी हल्दी और नीम को अपनी खोज बताकर उसे अपने नाम से पेटेंट करा लिया और हम देखते रह गए ! हमारे आयुर्वेद में शताब्दियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों में ही इनका उल्लेख हो चुका है ! ये उन्नीसवी शताब्दी में पैदा हुए एलोपैथ तो सिर्फ चोरी ही कर सकते हैं ! नया क्या करेंगे !
सन २००७ में चाइना ने दावा किया कि उसने 'एवियन-फ्लू' का इलाज 'कालमेघ' नामक औषधि द्वारा ढूंढ लिया है ! हमारे "AYUSH" [Department of Ayurveda, Yoga and naturopathy, unani, siddha and homeopathy ] विभाग ने अपने ग्रंथों का विवरण देकर, जिसमें कालमेघ आदि का सम्पूर्ण विवरण है , सन २०१० में चाइना से ये केस जीता और उसका पेटेंट वापस लिया !
आज के ताजा समाचार के अनुसार , ब्रिटेन ने दावा किया है कि 'अदरख' और 'कुटकी' द्वारा जुखाम (नजला, cold) का सफल इलाज इन्होने ढूंढ लिया है , और पेटेंट का दावा ठोंक दिया ! एक बार फिर 'AYUSH ', ने अपने पुराने ग्रंथों में वर्णित इन सभी औषधीय 'द्रव्यों' को प्रस्तुत करके ब्रिटेन के दावे को ख़ारिज किया !
ये विदेशी क्या जानें कि आज का AIDS, SARS और conjunctivitis जैसी अनेक व्याधियां तो सदियों पूर्व ही हमारे ग्रंथों में उल्लिखित हैं ।
धन्य हैं ये चोर देश जो हमारे देश से ग्रन्थ चोरी करके उसका अनुवाद करने के बाद उसे अपने नाम से पेटेंट कराते हैं। और शर्म आती है अपने ही देश के उन लोगों पर जो अपनी इस मूल्यवान धरोहर का सम्मान नहीं करते ! हमारी धरती वीरों और विद्वानों कि धरती रही है ! गणित से लेकर चिकित्सा तक , सभी विषयों पर मूल्यवान ग्रंथों कि रचना हमारे ऋषि और मनीषी पहले ही कर गए हैं ! ज़रुरत है तो स्वयं में स्वाभिमान पैदा करने कि और अपनी इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित करने कि , ताकि ये विदेशी हमारी ओर अपनी गिद्ध दृष्टि न कर सक
आइये एकजुट हो जाएँ और अपनी इस गौरवशाली सम्पदा कि रक्षा करें ! सौर्स http://zealzen.blogspot.com/2012/01/blog-post_04.html
सदियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों के पृष्ठ यदि पलटें जाएँ , तो आसानी से देखा जा सकता है उस समय की चिकित्सा एवं शल्य-क्रिया कितनी उन्नत अवस्था में थी ! लेकिन अफ़सोस है कि भारत एक 'ब्लैक-एज' के दौर से गुजरा है , जिस दौरान भारत कि धरोहर, अनेक ग्रंथों को चोरी कर लिया गया और अनेक ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया ! ये अमेरिका और ब्रिटेनवासी तो पक्के चोर हैं । इन्होने हमारे ग्रंथों को चुराया फिर उसमें लिखित एवं वर्णित बातों को अपने नाम से पेटेंट करते हैं!
सन २००१ में अमेरिका ने हमारी हल्दी और नीम को अपनी खोज बताकर उसे अपने नाम से पेटेंट करा लिया और हम देखते रह गए ! हमारे आयुर्वेद में शताब्दियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों में ही इनका उल्लेख हो चुका है ! ये उन्नीसवी शताब्दी में पैदा हुए एलोपैथ तो सिर्फ चोरी ही कर सकते हैं ! नया क्या करेंगे !
सन २००७ में चाइना ने दावा किया कि उसने 'एवियन-फ्लू' का इलाज 'कालमेघ' नामक औषधि द्वारा ढूंढ लिया है ! हमारे "AYUSH" [Department of Ayurveda, Yoga and naturopathy, unani, siddha and homeopathy ] विभाग ने अपने ग्रंथों का विवरण देकर, जिसमें कालमेघ आदि का सम्पूर्ण विवरण है , सन २०१० में चाइना से ये केस जीता और उसका पेटेंट वापस लिया !
आज के ताजा समाचार के अनुसार , ब्रिटेन ने दावा किया है कि 'अदरख' और 'कुटकी' द्वारा जुखाम (नजला, cold) का सफल इलाज इन्होने ढूंढ लिया है , और पेटेंट का दावा ठोंक दिया ! एक बार फिर 'AYUSH ', ने अपने पुराने ग्रंथों में वर्णित इन सभी औषधीय 'द्रव्यों' को प्रस्तुत करके ब्रिटेन के दावे को ख़ारिज किया !
ये विदेशी क्या जानें कि आज का AIDS, SARS और conjunctivitis जैसी अनेक व्याधियां तो सदियों पूर्व ही हमारे ग्रंथों में उल्लिखित हैं ।
धन्य हैं ये चोर देश जो हमारे देश से ग्रन्थ चोरी करके उसका अनुवाद करने के बाद उसे अपने नाम से पेटेंट कराते हैं। और शर्म आती है अपने ही देश के उन लोगों पर जो अपनी इस मूल्यवान धरोहर का सम्मान नहीं करते ! हमारी धरती वीरों और विद्वानों कि धरती रही है ! गणित से लेकर चिकित्सा तक , सभी विषयों पर मूल्यवान ग्रंथों कि रचना हमारे ऋषि और मनीषी पहले ही कर गए हैं ! ज़रुरत है तो स्वयं में स्वाभिमान पैदा करने कि और अपनी इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित करने कि , ताकि ये विदेशी हमारी ओर अपनी गिद्ध दृष्टि न कर सक
आइये एकजुट हो जाएँ और अपनी इस गौरवशाली सम्पदा कि रक्षा करें ! सौर्स http://zealzen.blogspot.com/2012/01/blog-post_04.html
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