देश में चल रहे गुप्त षड्यंत्र को समझने के लिए कृपया पांच मिनट दीजिए *
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लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ::
हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस।
भारत को और हम भारतवासियों को उन पर बहुत गर्व है। इन्होने सबसे पहले अपने
शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती
हैं। वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं। उन्हें भी सुख दुःख का
अनुभव होता है और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी
दिलचस्प है।
श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ
पौधे लगाए। अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में
तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया। दोनों को नियमित रूप से पानी
दिया, खाद डाली। किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार
हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो,
तुम्हें तो मर जाना चाहिए आदि आदि। और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से
पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते। मित्रों देखने से
यह घटना साधारण सी लगती है। किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को
श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे,
पुष्प भी अच्छे दिए।
तो मित्रों इस साधारण सी घटना से बोस ने यह
सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए
अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं।
मित्रों जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा ?
वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है।
500 -700 वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो,
खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता
नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृति नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है,
तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान
नहीं है आदि आदि। मित्रों, अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और
भारत व भारतवासियों को कोसते गए। अंग्रजों से पहले ये गालियाँ हमें
फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों
ने दीं। इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ। किन्तु मैकॉले
की नीति कुछ अलग थी। उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारतवासियों
को कब तक कोसता रहेगा ? कुछ ऐसी स्थायी व्यवस्था करनी होगी कि हमेशा
भारतवासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें।
इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System. सारा सिस्टम
उसने ऐसा रचा कि भारतवासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा
गुलाम ही रहें और उन्हें अपने धर्म संस्कृति से घृणा हो जाए। इस शिक्षा में
हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारतवासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं।
अब आप ही सोचे यदि भारतवासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू
ऐसा क्यों नहीं करते ? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गंदी गाली यह है कि हम
भारतवासी आर्य बाहर से आये थे। आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण
करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा
लिया और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास
में लगे हैं।
इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने
दूसरे राजा पर आक्रमण किया। इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद
है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं। और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं,
अच्छाइयां गायब हैं। आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो
भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता और राजा भी कौन कौन से गजनी,
तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं।
राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब
हैं। इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है। जैसे सिकंदर की
कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है। चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया
गया और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है।
इसी प्रकार
अर्थशास्त्र का विषय है। आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े
विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं। भारत का सबसे बड़ा
अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं। उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में
भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता। जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी
दुनिया में कोई नहीं हुआ।
दर्शनशास्त्र में भी हमें भुला दिया
गया। आज भी बड़े बड़े दर्शनशास्त्री अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़
रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है। अरस्तु और सुकरात का तो ये
कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही
है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है।
आपको पता होगा 1950 तक अमेरीका और
यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था। आज से 20-22 साल
पहले तक अमेरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं
था। साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी
जाती थी।
इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब
कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं। जबकि भारत में नारी
को सम्मान का दर्जा दिया गया। हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को
श्रीमती कहते हैं। कितना सुन्दर शब्द हैं श्रीमती जिसमें दो देवियों का
निवास है।
श्री होती है 'लक्ष्मी' और मति यानी 'बुद्धि' अर्थात
सरस्वती। हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं। किन्तु फिर भी
हमारे प्राचीन आचार्य दर्शनशास्त्र से गायब हैं। हमारा दर्शन तो यह कहता
है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा
ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है।
चिकित्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, सुश्रुत, धन्वन्तरी, शारंगधर, पतंजलि
सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टरों के नाम हमें रटाये
जाते हैं। आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवनशास्त्र है वह
आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौन से पायदान पर आता है ?
तो
मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें
तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें
ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि। यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले
भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें
शिक्षा देने चल पड़ा। हम भारतवासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास
है उसे मैकॉले की इस विनाशकारी शिक्षा की क्या आवश्यकता है ?
उस शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों ???
सोचिए जरा !!
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