शनिवार, जुलाई 14, 2018

थे तो सब नपुंसक ही,क्योकि कांग्रेस अभी भी पाकिस्तान के साथ है !

नपुंसक"
मृत्युशैया पर पड़े पड़े यमराज की प्रतीक्षा करते बृद्ध के मुह से अवचेतन में एक ही पंक्ति बार बार निकल रही थी- मैं नपुंसक नहीं था, मैं नपुंसक नहीं था...
निकट बैठी उसकी पुत्री कभी उसका सर सहलाती, तो कभी उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करती।
उस दस फ़ीट की छोटी सी कोठरी में मृत्यु की शांति उतर आई थी। किसी ने कहा- इनको दो बूंद गंगाजल पिला दो शीला, अब शायद समय हो आया।
शीला पास ही पड़ी अलमारी से चुपचाप गंगाजल की सीसी निकालने लगी।
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प्रातः की बेला थी, श्रीमुख शांडिल्य गोत्रीय ब्राह्मणों की डीह कश्मीर में सूर्य आज भी प्रतिदिन की भांति मुस्कुरा कर उगा था। हिम की कश्मीरी शॉल ओढ़े पहाड़ों पर पड़ती किरणों की पवित्र आभा को देख कर लगता था, जैसे युगों पुराने सूर्य मंदिर को स्वयं सूर्य की किरणें प्रणाम करने उतरी हों। कुल मिला कर प्राचीन स्वर्ग में स्वर्गिक आभा पसरी हुई थी।
अचानक गांव की मस्जिद के अजान वाले भोंपे से चेतावनी के स्वर गूंजे- "सभी हिंदुओं को आगाह किया जाता है कि अपनी सम्पति और महिलाओं को हमें दे कर आज ही कश्मीर छोड़ दें, वरना अपने अंजाम के जिम्मेवार वे खुद होंगे।"
राजेन्द्र कौल की इकलौती बेटी शीला अपनी कोई पुस्तक ढूंढ रही थी कि ये स्वर उसके कानों को जलाते हुए घुसे। वह आश्चर्यचकित हो कर मस्जिद को निहारने लगी। उसके अंदर मस्जिद के प्रति भी उतनी ही श्रद्धा थी जितनी मन्दिर के प्रति थी। मस्जिद से आती ध्वनि सदैव उसे ईश्वर की ध्वनि प्रतीत होती थी। वह समझ नहीं पायी कि एकाएक अल्लाह ऐसी भाषा कैसे बोलने लगा। वह अभी सोच ही रही थी, कि धड़धड़ाते हुए राजेन्द्र कौल घर मे घुसे और पागलों की तरह चीखते हुए बोले- बेटा अपना सामान समेटो, हमें शीघ्र ही यहां से जाना होगा।
शीला ने आश्चर्यचकित हो कर कहा- कहाँ पिताजी?
राजेन्द्र कौल ने हड़बड़ाहट में ही कहा- ईश्वर जाने कहाँ, पर यह स्थान हमें शीघ्र ही छोड़ना होगा।
- किन्तु यह हमारा घर है पिताजी! हम अपना घर छोड़ कर कहाँ जाएंगे?
-ज्यादा प्रश्न मत कर बेटी! हम जीवित रहे तो पुनः अपने घर आ जाएंगे, पर अभी यहां से जाना ही होगा। सारे मुसलमान हमारे दुश्मन बने हुए है, वे कुछ भी कर सकते हैं।
-किन्तु पिताजी, हम आजाद देश मे रहते हैं। हम इतना क्यों डर रहे हैं? यहां कोई व्यक्ति किसी अन्य को अकारण ही कष्ट कैसे दे सकता है?
- यह मस्जिद का ऐलान नहीं सुन रही हो? वे लोकतंत्र के मुह में पेशाब कर रहे हैं। व्यर्थ समय न गँवाओ, अपने सामान समेटो।
- पर पिताजी, हम तो वर्षों से साथ रह रहे हैं। और यह तो धर्मनिरपेक्ष देश है न?
- व्यर्थ बात मत कर बेटा, धर्मनिरपेक्षता इस युग का सबसे फर्जी शब्द है। कश्मीर ने आज इस शब्द की सच्चाई जान ली, शेष भारत भी अगले पचास वर्षों में जान जाएगा।
शीला अब और प्रश्न न कर सकी, क्योंकि राजेन्द्र कौल पागलों की तरह इधर उधर से उठा-पटक कर समान की गठरी बनाने लगे थे।
घण्टे भर में राजेंद्र कौल और उनकी पत्नी ने ले जाने लायक कुछ महंगे सामानों की गठरी बनाई, और शीला का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खींचते हुए बाहर निकले। शीला के पास कोई गठरी नहीं थी। वह समझ ही नहीं पाई कि इतने बड़े घर से वह क्या ले जाये और क्या छोड़े। राजेन्द्र कौल ने द्वार पर खड़ी अपनी खुली कार में गठरी फेंकी, पत्नी और बेटी को लगभग धकियाते हुए बैठाया, और गाड़ी स्टार्ट कर बाहर निकले। गाड़ी घर की चारदीवारी के बाहर निकली तो राजेन्द्र ने देखा, बाहर बीसों मुश्लिम युवक खड़े ठहाके लगा रहे थे। एक ने छेड़ते हुए कहा- कौल साब! जा रहे हैं तो समान ले कर क्यों जा रहे हैं, यह गठरी हमें देते जाइये।
राजेन्द्र कौल सर झुका कर चुपचाप गाड़ी बढ़ाते रहे। बाहर खड़ी भीड़ में कोई ऐसा नहीं था, जिसकी अनेकों बार राजेन्द्र कौल ने सहायता न की हो। अचानक किसी ने शीला का दुपट्टा खींचा, उसने मुड़ कर देखा तो आंखे जैसे फट गयीं। उसने दुप्पटे को खींचते हुए कहा- रहीम भाई आप?
रहीम ने झिड़क कर कहा- अबे चुप! मैं तेरा कैसा भाई? तू हिन्दू मैं मुसलमान।
राजेन्द्र कौल ने तेजी से गाड़ी बढ़ा दी, शीला का दुपट्टा रहीम के हाथ मे ही चला गया। उसने पीछे से ठहाका लगाते हुए कहा- अरे कौल साब! अपनी बेटी को तो हमें दे जाइये, वह आपके किस काम की...
शीला रो पड़ी थी। वह बचपन से ही रहीम को राखी बांधती आयी थी, और आज पल भर में ही रहीम ने... उसने पीछे मुड़ कर देखा, महलों जैसा उसका घर पीछे छूट रहा था।
राजेन्द्र कौल चुपचाप गाड़ी भगाते जम्मू की ओर निकल पड़े।
गांव के बाहर निकलने पर शीला ने कहा- पिताजी! आपको नहीं लगता कि आप नपुंसक हैं?
राजेन्द्र कौल कोई उत्तर नहीं दे सके।
पच्चीस वर्ष बीत गए। महल जैसे घर में रहने वाले राजेन्द्र कौल का जीवन किराए की एक कोठरी में कट गया, पर वे कभी अपने गांव नहीं लौट सके। वे जब भी शीला को देखते तो उन्हें लगता कि शीला की आंखे उनसे पूछ रही हैं- "क्या यही जीवन जीने के लिए भागे थे पिताजी? इससे अच्छा तो लड़ कर मर गए होते।"
इन पच्चीस वर्षों में शीला का ब्याह हुआ और समय के साथ उनकी पत्नी का देहांत भी हो गया, पर राजेन्द्र कौल जलते ही रहे।
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शीला ने पिता के मुह में गंगाजल की दो बूंदे डाली, और दो बूंदे उसकी आँखों से टपक पड़ी। उसने मन ही मन कहा- क्या कहूँ पिताजी, थे तो सब नपुंसक ही।
राजेन्द्र कौल अंतिम बार बुदबुदाए- मैं.... नपुंसक....
पर इससे अधिक न बोल सके। यमराज अपना कार्य कर चुके थे।
ऐसे लेख चुराए नहीं जाते, दर्द महसूस किया जाता है....
मोदीजी को लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे पाकिस्तान को अकेला कर दिया ये उनकी भूल है क्योकि कांग्रेस अभी भी पाकिस्तान के साथ है !
कौन कहता है कि काँग्रेस को कोई पसंद नहीं करता,
आतँकवादियों की पहली पसंद तो काँग्रेस ही है!!!

शुक्रवार, जुलाई 13, 2018

रांची के ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ से जुड़े होम ‘निर्मल हृदय’ से बच्चों की बिक्री को लेकर हर दिन चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं.

रांची के ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ से जुड़े होम ‘निर्मल हृदय’ से बच्चों की बिक्री को लेकर हर दिन चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं. '
होम में बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं के अभिभावकों से हलफनामा लिया जाता था कि नवजात को जन्म देने के बाद उससे जुड़े सारे अधिकार मिशनरी ऑफ चैरिटी के पास रहेंगे और भविष्य में बच्चे को लेकर किसी भी तरह का दावा मां या उसके किसी रिश्तेदार की ओर से नहीं किया जाएगा.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस तरह का हलफनामा लिया जाना पूरी तरह गैर कानूनी है. रांची की समाज कल्याण अधिकारी कंचन सिंह ने 'इंडिया टुडे' से बात करते हुए इस तरह हलफनामा लिए जाने को अवैध बताया.
होम की निगरानी में बच्चे को जन्म देने वाली अविवाहित महिलाओं के अभिभावकों से हस्ताक्षर करवा कर जो हलफनामा लिया जाता था, उस पर लिखा है- “मैं श्री/सुश्री/श्रीमति.........अपनी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार.....को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टरों के संरक्षण में कुछ दिनों के लिए उसके डिलीवरी (प्रसव) तक रखना चाहता/चाहती हूं. क्योंकि मेरी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार शादी से पहले ही किसी लड़के के साथ गलत कर गर्भवती हो गई.
ये भी पढ़ें: मिशनरीज ऑफ चैरिटी को ममता का समर्थन, कहा- सिस्टर्स को बनाया जा रहा निशाना
इसलिए वह अपनी पूरी इच्छा से बच्चे को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टरों को सदा के लिए सौंप देना चाहती है. हमें भी बच्चा नहीं चाहिए. प्रसव के बाद हम अपनी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार को घर वापस ले जाएंगे. अगर प्रसव या ऑपरेशन के समय मेरी बेटी/बहन/भतीजी/
रिश्तेदार के जान पर खतरा हो तो उसकी कोई जिम्मेदारी सिस्टर्स पर नहीं होगी, पर मेरी खुद की होगी.”
जाहिर है कि ये हलफनामा खुद ही ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में बरती जाने वाली अनियमितता को लेकर सबसे बड़ा सबूत है. रांची में मिशनरीज ऑफ चैरिटी से जुड़े होम ‘निर्मल हृदय’ से बच्चों को बेचे जाने के आरोप में होम की एक नन और एक कर्मचारी अनीमा इंदवार को पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया गया.अनीमा इंदवार ने होम से चार बच्चों को बेचे जाना कबूल किया था.
होम की निगरानी में बच्चे को जन्म देने वाली अविवाहित महिलाओं के अभिभावकों से हस्ताक्षर करवा कर जो हलफनामा लिया जाता था, उस पर लिखा है- “मैं श्री/सुश्री/श्रीमति.........अपनी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार.....को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टरों के संरक्षण में कुछ दिनों के लिए उसके डिलीवरी (प्रसव) तक रखना चाहता/चाहती हूं. क्योंकि मेरी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार शादी से पहले ही किसी लड़के के साथ गलत कर गर्भवती हो गई.
बच्चा नहीं चाहिए. प्रसव के बाद हम अपनी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार को घर वापस ले जाएंगे. अगर प्रसव या ऑपरेशन के समय मेरी बेटी/बहन/भतीजी/रिश्तेदार के जान पर खतरा हो तो उसकी कोई जिम्मेदारी सिस्टर्स पर नहीं होगी, पर मेरी खुद की होगी.”
जाहिर है कि ये हलफनामा खुद ही ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में बरती जाने वाली अनियमितता को लेकर सबसे बड़ा सबूत है. रांची में मिशनरीज ऑफ चैरिटी से जुड़े होम ‘निर्मल हृदय’ से बच्चों को बेचे जाने के आरोप में होम की एक नन और एक कर्मचारी अनीमा इंदवार को पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया गया.अनीमा इंदवार ने होम से चार बच्चों को बेचे जाना कबूल किया था.

गुरुवार, जुलाई 12, 2018

भारत में ईसाई मिशनरीज कितनी शक्तिशाली हे इस पुरे लेख को पढ़ कर आप समझ सकते हे !

भारत में ईसाई मिशनरीज कितनी शक्तिशाली हे इस पुरे लेख को पढ़ कर आप समझ सकते हे !
चार साल पहले रांची के चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (CWC) के चेयरपर्सन डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने यहां के हिनू में स्थित मिशनरी ऑफ चैरिटी (MOC)के द्वारा चलाए जा रहे शिशु भवन का औचक निरीक्षण किया था. बताया जाता है कि तब शिशु भवन की कई सिस्टर्स ने इस पर हंगामा करते हुए उनको रोकने की कोशिश की थी. डॉ. सिंह को इसकी सजा भुगतनी पड़ी. इसके कुछ ही महीनों बाद डॉ. सिंह को CWC के प्रमुख पद से हटा दिया गया.
डॉ. सिंह ने अपने क्लीनिक में आजतक-इंडिया टुडे से बात की. उन्होंने बताया, 'करीब साढ़े चार साल पहले मुझे लगा कि मेरे पक्ष सही है. कुछ सूत्रों से जानकारी मिली थी कि शिशु भवन से बच्चे अवैध तरीके से बेचे जा रहे हैं. इस सूचना के आधार पर मैं जनवरी, 2014 में इस केंद्र की जांच करने गया. लेकिन वहां की सिस्टर्स ने मेरे साथ सहयोग नहीं किया और हमें तब कोई जानकारी नहीं मिली.'
गौरतलब है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था से मदर टेरेसा की प्रतिष्ठा जुड़ी है. इसलिए इसके आश्रय स्थलों से बच्चों के बेचे जाने की खबर के सामने आते ही काफी हंगामा शुरू हो गया. हालांकि रांची के बिशप ऑफ आर्कडियोसेस ने इसे 'कैथोलिक चर्च को बदनाम करने की साजिश' बताया.
उन्होंने कहा, 'यह कैथोलिक चर्च को बदनाम करने की कुटिल योजना योजना है. लोगों को डराया जा रहा है. यह कोई छिपी बात नहीं है कि हमें विदेश से चंदा मिलता है. यदि वे हमारे एमओसी खाते को बंद करना चाहते हैं तो इसके लिए उनके पास कोई वजह होनी चाहिए. एफसीआर गाइडलाइन के तहत पूरा ब्योरा सरकार के पास है. हमें प्रधानमंत्री पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि वह हस्तक्षेप करेंगे.'
इस मामले की जांच कर रहे अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP) ने कहा है कि दोनों आश्रय स्थलों का साल 2015 से पहले का रेकॉर्ड गायब है.
डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने साल 2014 में झारखंड सरकार के समाज कल्याण विभाग के निदेशक और झारखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस बारे में लेटर लिखकर जानकारी भी दी थी.
मिशनरी ऑफ चैरिटीज ने इसके बाद डॉ. सिंह के खिलाफ ही राज्य समाज कल्याण विभाग के सचिव के यहां शिकायत दर्ज करा दी. संस्था ने आरोप लगाया कि डॉ. सिंह कई पत्रकारों और फोटोग्राफर के साथ शिशु भवन गए और उन्होंने बखेड़ा किया.
डॉ. सिंह ने बताया, 'राज्य सरकार ने जल्दबाजी में एक जांच कराई और संस्था को क्लीन चिट दे दिया. मुझे पद से निलंबित कर दिया गया.' जांच कमेटी ने कहा कि डॉ. सिंह यह साबित नहीं कर पाए कि उन्होंने किस कानून के तहत मिशनरीज के आश्रय स्थल का निरीक्षण किया था.
डॉ. सिंह ने कहा, 'कमिटी ने CWC चेयरपर्सन के इन परिसरों में जांच के अधिकार पर सवाल उठाए. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत CWC चेयरपर्सन को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने क्षेत्र में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कोई भी कदम उठाए.'

अब 20 करोड़ मुसलमानों को मारा थोड़े न जा सकता है!

अब 20 करोड़ मुसलमानों को मारा थोड़े न जा सकता है!

जिन्हें इस्लामी शासन या शरीया चाहिए उन्होंने 1947 में पाकिस्तान बना ही लिया तो फिर अब हिन्दुस्तान में समान नागरिक क़ानून लागू करने की जगह शरीया कोर्ट स्थापित करने की माँग का क्या मतलब? यह तो छिपे रुस्तम एक और पाकिस्तान की माँग करने जैसा ही है।
इसके जवाब में लोग यह तर्क देते हैं कि 'अब 20 करोड़ मुसलमानों को मार तो सकते नहीं'। इसका सीधा अर्थ यह है कि संविधान जाए भाड़ में, जो करना है कर लो, हम तो वही करेंगे जो इस्लाम सम्मत है।
लेकिन मुद्दे को अगर इस्लामी इतिहास और मुसलमानों की दृष्टि से देखा जाए तो इसका बड़ा सीधा और प्रभावी हल निकलता है।
पहले इतिहास पर एक नज़र। इस्लाम के प्रचार के लिए 1300 सालों में 27 करोड़ से ज्यादा लोगों का नरसंहार हुआ। इस दौरान दुनिया की आबादी 100 से 200 करोड़ रही। यही काम ईसाइयों और साम्यवादियों ने किया। ईसाई तो 30 करोड़ का आँकड़ा पार कर गए। कम्युनिस्टों ने 100 वर्ष में ही 10 करोड़ लोगों का नरसंहार किया।
अब ज़रा इस मुद्दे को नरसंहारियों की नज़र से देखा जाए। जब नरसंहारी कहते हैं कि 20 करोड़ लोगों को थोड़े न मारा जा सकता है तब वे वस्तुतः अपना नहीं बल्कि अहिंसा में आस्था रखनेवाले काफ़िरों के मूल्यों का इस्तेमाल कर अपनी गैरवाजिब बात मनवाना चाहते हैं और वे इसमें सफल भी होते रहे हैं।
अगर काफ़िर यह सोच लें कि अहिंसा में आस्था ही उनके खिलाफ हिंसा के मूल में है तो फिर ऐसी अहिंसा किस काम की? दूसरे यह कि अपनी जान बचाने के लिए अगर एक व्यक्ति 5 हमलावरों की भी जान ले सकता है तो 100 करोड़ लोग अहिंसा-केंद्रित जीवनमूल्यों की रक्षा के लिए उन 20 करोड़ लोगों की आरती क्यों उतारें जो हिंसा पर उतारू हैं?
उत्तर साफ़ है 100 करोड़ लोग अपनी सुरक्षा के लिए 20 करोड़ तो क्या 500 करोड़ लोगों का भी काम तमाम कर सकते हैं। यह तो बहादुरी का काम होगा। करोड़ों की आबादी वाले दुश्मन मुस्लिम देशों से घिरा 80 लाख आबादी वाला इस्राइल क्या यही काम नहीं कर रहा?
तो मुद्दा 20 करोड़ लोगों के नरसंहार का नहीं बल्कि आत्मरक्षार्थ पूर्व-हिंसा और प्रतिहिंसा का है, चाहे इसमें जितनी जानें जाएँ।
डॉ वफ़ा सुल्तान कहती हैं कि क़ुरआन पढ़ने के बाद भी जो मुसलमान बना रहता है वह मनोरोगी है। इस दृष्टि से तो यह दुनिया आज 150 करोड़ से ज्यादा मनोरोगियों से अँटी पड़ी है। मतलब कि आत्मरक्षार्थ सक्रिय और रणनीतिक हिंसा सिर्फ भारत के काफ़िरों की जरुरत न होकर पूरी दुनिया के ग़ैर-मुसलमानों की मजबूरी बन गई है। ऐसे में सवाल 20 करोड़ बनाम 100 करोड़ की जगह 150 करोड़ बनाम 600 करोड़ का है। इस तरह विश्वयुद्ध से ज्यादा यह मुद्दा विश्वव्यापी गृहयुद्ध का होता जा रहा है और भारत से पहले इसके यूरोप में शुरू होने के आसार हैं।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

अमृत और जहर

आइये बात को यूं समझते है ,भारत में अतिविद्वान लोग रहते है, तर्क और कुतर्क के महारथियों को इस लेख के माध्यम से प्रणाम
# आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं और मेडिकल साइंस भी शहद को सर्वोत्तम पौष्टिक और एंटीबायोटिक भंडार मानती हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का हैं कि शहद की एक बूंद भी अगर कुत्ता चाट ले तो वह तुरन्त मर जाता हैं यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह शहद कुत्ते के लिये साइनाइड हैं..!!!
दूसरा #देशी_घी शुद्ध देशी गाय के घी को आयुर्वेद अमृत मानता हैं और मेडिकल साइंस भी इसे अमृत समान ही कहता हैं पर आश्चर्य ये हैं कि मक्खी घी नही खा सकती अगर गलती से देशी घी पर मक्खी बैठ भी जाये तो अगले पल वह मर जाएगी इस अमृत समान घी को चखना मक्खी के भाग्य में नही होता!
# मिश्री .. इसे भी अमृत के समान मीठा माना गया हैं आयुर्वेद में हाथ से बनी मिश्री को अमृत तुल्य बताया गया हैं और मेडिकल साइंस हाथ से बनी मिश्री को सर्वोत्तम एंटबायोटिक मानता है लेकिन आश्चर्य हैं कि अगर खर ( # गधे) को एक डली मिश्री खिला दी जाए तो अगले ही पल उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे! ये अमृत समान मिश्री खर नही खा सकता हैं !!!
नीम के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई #निम्बोली में सब रोगों को हरने वाले गुण होते हैं और आयुर्वेद उसे अमृत ही कहता हैं मेडिकल साइंस भी नीम के बारे में क्या राय कहता हैं आप जानते होंगे! लेकिन आश्चर्य ये हैं कि रात दिन नीम के पेड़ पर रहने वाला #कौवा अगर गलती से निम्बोली को चख भी ले तो उसका गला खराब हो जाता हैं अगर निम्बोली खा ले तो कौवे की मृत्यु निश्चित हैं....!!!
इस धरती पर ऐसा बहुत कुछ हैं जो #अमृत_समान हैं,
# अमृत_तुल्य हैं.....पर इस धरती पर कुछ ऐसे #जीव भी हैं जिनके #भाग्य में वह #अमृत भी नही हैं ...!!
# मोदी भारत के लिये #अमृत समान ही हैं पर मैडम के
# मक्खी_कुत्ते_कौवे_गधे और मीडिया के शिशुपालों आदि को अमृत की महत्ता समझाने में समय नष्ट न कीजिये.....इनके भाग्य में वो #समझ ही नही हैं....ये जीवन भर #गंदगी मे ही सांस लिये है,इसलिये उसे ही अपना
# प्रारब्ध समझतें है...!
इसलिये मोदी भी भारत के लिए राजनीतिक औसधि है ।क्योंकि वो देश को खोखला करने बालों से मुक्त कराने में ,अंतरराष्ट्रीय शक्ति,सामरिक शक्ति बनाकर भारतीयों का सर गर्व से ऊंचा करने में रात दिन लगा है बेहतर हैं इन कुत्ते,गधे, मक्खी जैसों को समझ आ जाये जो एकजुट होकर देश को पहले जैसा बनाने में लगे है।
जागो और जगाओ।।
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मंगलवार, जुलाई 10, 2018

हिन्दू धर्म के यह प्रसिद्ध बारह संवाद, जानकर चौंक जाएंगे!आप

हिन्दू धर्म के यह प्रसिद्ध बारह संवाद, जानकर चौंक जाएंगे!आप
वैदिक गुरुकुल क्षेत्र
पाश्चात्यता या आधुनिकता के नाम पर विचारों का खुलापन भ्रामक विचारों के फैलने के लिए, देश विरोधी विचारों और गतिविधियों के लिए भी अच्छा माहौल तैयार करता है। लोगों को ईश्वर से काट दो, बेरोजगारी को बढ़ाओ, गरीबी का सम्मान करो, युवाओं को हर तरह की वर्जनाओं को तोड़ना सिखाओं, मीडिया के माध्यम से देश में असंतोष की आग को भड़काओं, धर्मों में फूट डालों और फिर तभी आप किसी देश को तोड़ सकते हैं।
आजकल देखने में यही आ रहा है कि हमारे देश का युवा भटक गया है। वह उन विचारों के हाथों की कठपुतलियां बन गया है जो उसे ही नहीं भारत को भी बर्बादी के रास्ते पर ले जाती है।
अधिकतर हिन्दुओं को अपने धर्म का ज्ञान नहीं होता। यही कारण है कि वे युवा अवस्था में विपरित विचारधारा के प्रभाव में आकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। इसके अलावा वे जिंदगी भर द्वंद्व, दुविधा या असंतोष की भावना में ही रहते हैं। वे कभी यह निर्णय नहीं ले पाते हैं कि क्या सही और क्या गलत। ऐसे लोग खुद के परिवार को ही संकट में नहीं डालते बल्कि ये लोग देश, धर्म और समाज के लिए भी घातक सिद्ध होते हैं, क्योंकि वे जो भी सोचते हैं वह उनकी सोच नहीं होती है वह या तो बाजार से प्रभावित या वामपंथ से प्रभावित सोच होती है। खैर..
भारत में ऐसे बहुत से ज्ञानी और ध्यानी हुए जिनकी गाथा और जिनके विचार जानकर आप हैरान रह जाएंगे। वामपंथ या एकेश्वरवाद की विचारधारा भी भारत के दर्शन की देन है। भारत में ही ऐसे कई महान राजनीतिज्ञ, नीतिज्ञ, दार्शनिक, आध्यात्मिक, आस्तिक, नास्तिक, वैज्ञानिक और चमत्कारिक संत हुए है तो हमें किसी विदेशी को जानने की कोई जरूरत नहीं।
आओ जानते हैं कि हिन्दू धर्म में दो लोगों के बीच होने वाले ऐसे कौन से विश्व प्रसिद्ध संवाद है जिन्हें पढ़कर या सुनकर लाखों लोगों का जीवन बदल गया है और जिन्हें पढ़कर दुनियभार के राजनीतिज्ञ, नीतिज्ञ, वैज्ञानिक, आध्यामिक और दार्शनिकों ने अपना एक अलग ही धर्म, दर्शन, नीति और विज्ञान का सिद्धांत गढ़ा। यह तय है कि इन्हें पढ़कर आपकी जिंदगी में शांति, दृढ़ता, निर्भिकता और बुद्धि का विकास होगा। हम यहां आपके लिए ऐसी जानकारी लाएं हैं जिन्हें जानकार आप निश्चित ही हैरान रह जाएंगे।
१)अष्टावक्र और जनक संवाद : अष्टावक्र दुनिया के प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य को जैसा जाना वैसा कह दिया। न वे कवि थे और न ही दार्शनिक। चाहे वे ब्राह्मणों के शास्त्र हों या श्रमणों के, उन्हें दुनिया के किसी भी शास्त्र में कोई रुचि नहीं थी। उनका मानना था कि सत्य शास्त्रों में नहीं लिखा है। शास्त्रों में तो सिद्धांत और नियम हैं, सत्य नहीं, ज्ञान नहीं। ज्ञान तो तुम्हारे भीतर है।
अष्टावक्र ने जो कहा वह 'अष्टावक्र गीता' नाम से प्रसिद्ध है। राजा जनक ने अष्टावक्र को अपना गुरु माना था। राजा जनक और अष्टावक्र के बीच जो संवाद हुआ उसे 'अष्टावक्र गीता' के नाम से जाना जाता है।
२)श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद: हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ गीता में हैं। उपनिषदों की संख्या 1000 से अधिक है उसमें भी 108 प्रमुख हैं। गीता के ज्ञान को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में खड़े होकर दिया था। यह श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद नाम से विख्यात है।
किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता को अच्छे से समझने से ही आपकी समझ में बदलाव आ जाएगा। धर्म, कर्म, योग, सृष्टि, युद्ध, जीवन, संसार आदि की जानकारी हो जाएगी। सही और गलत की पहचान होने लगेगी। तब आपके दिमाग में स्पष्टता होगी द्वंद्व नहीं। जिसने गीता नहीं पढ़ी वह हिन्दू धर्म के बारे में हमेशा गफलत में ही रहेगा।
श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे। घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश कृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं। छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है।
३)यक्ष-युद्धिष्ठिर संवाद :
यक्ष और युद्धिष्ठिर के बीच हुए संवाद को यक्ष प्रश्न कहा जाता है। यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो संवाद हुआ है उसे जानने के बाद आप जरूर हैरान रह जाएंगे। यह अध्यात्म, दर्शन और धर्म से जुड़े प्रश्न ही नहीं है, यह आपकी जिंदगी से जुड़े प्रश्न भी है। आप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ ही रहे होंगे।
'यक्ष' ने किए थे युधिष्ठिर से ये प्रश्न,,,,भारतीय इतिहास ग्रंथ महाभारत में ‘यक्ष-युधिष्ठिर संवाद’ नाम से एक बहु चर्चित प्रकरण है। संवाद का विस्तृत वर्णन वनपर्व के अध्याय 312 एवं 313 में दिया गया है। यक्ष ने युद्धिष्ठिर से लगभग 124 सवाल किए थे। यक्ष ने सवालों की झड़ी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली।
अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए। अंत में यक्ष ने चार प्रश्न युधिष्ठिर के समक्ष रखे जिनका उत्तर देने के बाद ही उन्होंने मृत पांडवों (अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) को जिंदा कर दिया था। यह सवाल जीवन, संसार, सृष्टि, ईश्वर, प्रकृति, नीति, ज्ञान, धर्म, स्त्री, बुराई आदि अनेकों विषयों के संबंधित थे।
४)लक्ष्मण और रावण संवाद : प्रभु श्रीराम के तीर से जब रावण मरणासन्न अवस्था में हो गया, तब श्रीराम ने लक्ष्मण से उसके पास जाकर शिक्षा लेने को कहा। श्रीराम की यह बात सुनकर लक्ष्मण चकित रह गए।
भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार में नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित रावण अब विदा हो रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता।
श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के नजदीक सिर के पास जाकर खड़े हो गए, लेकिन रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मण ने लौटकर प्रभु श्रीराम से कहा कि वे तो कुछ बोलते ही नहीं। तब श्रीराम ने कहा यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना है तो उसके चरणों के पास हाथ जोड़कर खड़े होना चाहिए, न कि सिर के पास। श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, जाओ और रावण के चरणों के पास बैठो। यह बात सुनकर लक्ष्मण इस बार रावण के चरणों में जाकर बैठ गए। रावण ने लक्ष्मण को जो सीख दी उसे सभी जानते हैं।
५)अंगद और रावण के बीच संवाद :
गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है।
अंगद-रावण के बीच जो संवाद हुआ था वह बहुत ही रोचक था उसे पढ़ने और उसकी व्याख्या जानेने से व्यक्ति को अपने जीवन की स्थिति के बारे में बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है।
६)यमराज नचिकेतासंवाद :
वाजश्रवसपुत्र नचिकेता और मृत्यु के देवता यमराज के बीच जो संवाद होता है वह विश्व का प्रथम दार्शनिक संवाद माना जा सकता है। वाजश्रवस अपने पुत्र को क्रोधवा यमराज को दान कर देते हैं। नचिकेता तब यमलोक पहुंच जाते हैं।
यमलोक में उसे वक्त यमदूत नचिकेता से कहते हैं कि यमराज इस वक्त नहीं है। तब नचिकेता तीन दिन तक यमराज की प्रतिक्षा करते हैं। यमपुरी के द्वार पर बैठा नचिकेता बीती बातें सोच रहा था। उसे इस बात का संतोष था कि वह पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था। लगातार तीन दिन तक वह यमपुरी के बाहर बैठा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा। तीसरे दिन जब यमराज आए तो वे नचिकेता को देखकर चौंके।
जब उन्हें उसके बारे में मालूम हुआ तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए। अंत में उन्होंने नचिकेता को अपने कक्ष में बुला भेजा। यमराज के कक्ष में पहुंचते ही नचिकेता ने उन्हें प्रणाम किया। उस समय उसके चेहरे पर अपूर्व तेज था। उसे देखकर यमराज बोले- 'वत्स, मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुआ। तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो।'
७)शिव-पार्वती संवाद : रामायण या रामचरित के बालकांड में शिव-पार्वती संवाद का वर्णन मिलता है। 'गायत्री-मंजरी' में भी 'शिव-पार्वती संवाद' आता है। हम इस संवाद की बात नहीं कर रहे हैं। भारत के कश्मीर राज्य में अमरनाथ नामक गुफा है जहां जून माह में बाबा अमरनाथ के दर्शन करने के लिए हजारों हिन्दू जाते हैं। दरअसल, यह गुफा शिव और पार्वती संवाद की साक्षी है। यहां भगवान शिव ने माता पार्वती को 'रहस्यमयी ज्ञान' की शिक्षा दी थी। इस ज्ञान को विज्ञान भैरव तंत्र में संग्रहित किया गया है।
शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
अमरनाथ के अमृत वचन :शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। मेरुतंत्र
८)याज्ञवल्क्यजी-गार्गी संवाद : वृहदारण्यक उपनिषद् में दोनों के बीच हुए संवाद का उल्लेख मिलता है। राजा जनक अपने राज्य में शास्त्रार्थ का आयोजन करते रहते थे। जो भी शास्त्रार्थ में जीत जाता था वह सोने से लदी गाएं ले जाता था। एक बार के आयोजन में याज्ञवल्क्यजी को भी निमंत्रण मिला था। तब याज्ञवल्क्यजी ने शास्त्रार्थ से पहले ही अपने एक शिष्य से कहा बेटा! इन गौओं को अपने यहां हांक ले चलो।
ऐसे में सभी ऋषि क्रुद्ध होकर उनसे शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्यजी ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया और सभी को संतुष्ट कर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी बुलायी गयी थी। सबके पश्चात् याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने वे उठी। दोनों के बीच जो शास्त्रार्थ हुआ। गार्गी ने याज्ञवल्क्यजी से कई प्रश्न किए। अंत में याज्ञवल्क्य ने कहा- गार्गी! अब इससे आगे मत पूछो।
इसके बाद महर्षि याज्ञवक्ल्यजी ने यथार्थ सुख वेदान्ततत्त्व समझाया, जिसे सुनकर गार्गी परम सन्तुष्ट हुई और सब ऋषियों से बोली-भगवन्! याज्ञवल्क्य यथार्थ में सच्चे ब्रह्मज्ञानी हैं। गौएं ले जाने का जो उन्होंने साहस किया वह उचित ही था।
९) काक भुशुण्डी-गरुड़जी संवाद :
काक भुशुण्डी ने पक्षीराज गरुड़जी को राम की कथा पहले ही सुना दी थी। इसका वर्णन हमें रामायण और रामचरित मानस में मिलता है। शिवजी माता पार्वती से कहते हैं कि इससे पहले यह सुंदर कथा काक भुशुण्डी ने गरुड़जी से कही थी।
रामचरित मानस में काकभुशुण्डी ने अपने जन्म की पूर्वकथा और कलि महिमा का वर्णन किया है। इसका उल्लेख रामचरित मानस में मिलता है।
नारदजी की आज्ञा से जब भगवान राम को नागपाश से छुड़ाकर गरुड़जी पुन: अपने धाम लौट रहे होते हैं तब उनके मन में शंका उत्पन्न होती है कि यह कैसे भगवान जो एक तुच्छ राक्षस द्वारा फेंके गए नागपाश से ही बंध गए? इस शंका समाधान के लिए वे नारद से पूछते हैं। नारदजी उन्हें ब्रह्मा के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उन्हें शिवजी के पास भेज देते हैं। तब शिवजी ने कहा भगवान की माया बताना मुश्किल है। एक पक्षी ही एक पक्षी को समझा सकता है अत: तुम काक भिशुण्डी के पास जाओ। काक भुशुण्डी और गरुड़जी के बीच जो संवाद होता है वह अतुलनीय है।
१०)युधिष्ठिर-भीष्म संवाद : अंतिम वक्त में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को समझाया धर्म का मर्म। क्या कहा भीष्म ने युधिष्ठिर से जब वे तीरों की शैया पर लेटे हुए थे?
भीष्म यद्यपि शरशय्या पर पड़े हुए थे फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने से युद्ध के बाद युधिष्ठिर का शोक दूर करने के लिए राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ दिया। इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्चाताप दूर हो जाता है। यह उपदेश महाभारत के भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है।
११)धृतराष्ट्र-विदुर संवाद : महाभारत’ की कथा के महत्वपूर्ण पात्र विदुर को कौरव-वंश की गाथा में विशेष स्थान प्राप्त है। विदुर हस्तिनापुर राज्य के शीर्ष स्तंभों में से एक अत्यंत नीतिपूर्ण, न्यायोचित सलाह देने वाले माने गए है।
हिन्दू ग्रंथों में दिए जीवन-जगत के व्यवहार में राजा और प्रजा के दायित्वों की विधिवत नीति की व्याख्या करने वाले महापुरुषों में महात्मा विदुर सुविख्यात हैं। उनकी विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है।
वास्तव में महर्षि वेदव्यास रचित ‘महाभारत’ का उद्योग पर्व ‘विदुर नीति’ के रूप में वर्णित है। महाभारत में एक और जहां महत्वपूर्ण कृष्ण अर्जुन संवाद, यक्ष युधिष्ठिर संवाद, धृतराष्ट्र संजय संवाद, भीष्म युद्धिष्ठिर संवाद है तो दूसरी और धृतराष्ट और विदूर का महत्वपूर्ण संवाद भी वर्णित है। प्रत्येक हिन्दू को महाभारत पढ़ना चाहिए। इस घर में भी रखना चाहिए। जो यह कहता है कि महाभारत घर में रखने से महाभारत होती है वह मूर्ख, अज्ञानी या धूर्त व्यक्ति हिन्दुओं को अपने धर्म से दूर रखना चाहता होगा।
१२)आदि शंकराचार्य-मंडन मिश्र संवाद :
आदि शंकराचार्य देशभर के साधु-संतों और विद्वानों से शास्त्रार्थ करते करते अंत में प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के गांव पहुंचे थे। यहां उन्होंने 42 दिनों तक लगातार हुए शास्त्रार्थ किया जिसकी निर्णायक थीं मंडन मिश्र की पत्नी भारती।
आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच जो संवाद हुआ उस संवाद की बहुत चर्चा होती है। हालांकि आदि शंकराचार्य ने मंडन को पराजित कर तो दिया, पर उनकी पत्नी के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और अपनी हार मान ली।
वैदिक गुरुकुल क्षेत्र
हालांकि उपरोक्त के अलावा भी और भी हैं लेकिन यहां कुछ प्रमुख ही प्रस्तुत किए गए हैं।
वैदिक गुरुकुल क्षेत्र

गांधी के वह पत्र भी उपलब्ध हैं जिसमें स्वीकार किया गया है कि उसके पुत्र हीरा लाल उर्फ अब्दुल्लाह ने अपने बेटी मनु को हवश का शिकार बनाया था.

Umakant Misra
गांधी के पुत्र हीरालाल गांधी इस्लाम अपना कर अब्दुल्लाह बने और अपनी बेटी मनु को बीबी बनाने पर तुल गये !! मनु की ऐतिहासिक सत्य कथा-*
‘‘अब्दुल्लाह, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि तुम्हारी यह सात साल की छोकरी आर्य समाज मंदिर में हवन करने जाती है?’’ जकारिया साहिब ने अब्दुल्लाह के घर की बैठक में बैठे हुए रोष भरे शब्दों में कहा, ‘‘यह अब तक मुस्लिम क्यों नहीं बनी, इसे भी बनाइए, यदि इसे मुस्लिम नहीं बनाया गया तो इसका तुमसे कुछ भी संबंध नहीं है।’’
हीरालाल उर्फ अब्दुल्लाह ने 27 जून 1936 को नागपुर में इस्लाम कबूल किया था और 29 जून 1936 को मुंबई में इसकी सार्वजनिक घोषणा की, और 1 जुलाई 1936 को यह घटना घट गई। हीरालाल पर इस्लाम का रंग चढ़ गया था और हर हाल में पूरे हिंदुस्तान को इस्लामी देश बनाना चाहता था। वह जकारिया के सवाल का कुछ जवाब नहीं दे पाया । तभी जकारिया ने अब्दुल्लाह की मासूम बेटी मनु जो उस समय सात साल की थी, उसकी ओर मुखातिब होकर कहा, ‘‘क्यों तुम इस्लाम कबूल नहीं करोगी?’’
मनु- ‘‘नहीं मैं इस्लाम कबूल नहीं करूंगी!’’
‘‘यदि तुम इस्लाम कबूल नहीं करोगी तो तुम्हें मुंबई की चैपाटी पर नंगी करके तुम्हारी बोटी-बोटी करके चील और कव्वो को खिला दी जाएगी,’’ फिर वे अब्दुल्लाह( हीरालाल) को चेतावनी देने लगे- ए, ‘‘अब्दुल्ला काफिर लड़कियां और औरतें अल्लाह की ओर मुस्लिमों को दी गई नेमतें हैं...देखो यदि तुम्हारी बेटी इस्लाम कबूल नहीं करती तो तुम्हें इसको रखैल समझकर भोग करने का पूरा हक है, क्योंकि जो माली पेड़ लगाता है उसे फल खाने का भी अधिकार है, यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो हम ही इस फल को चैराहे पर सामूहिक रूप से चखेंगे। हमें हर हाल में हिन्दुस्तान को मुस्लिम देश बनाना है और पहले हम लोहे को लोहे से ही काटना चाहते हैं।’’ कहकर वह चला गया था और उसी रात अब्दुल्लाह ने अपनी नाबालिग बेटी की नथ तोड़ डाली थी ( अर्थात अपनी हब्स का शिकार बनाआ)। बेटी के लिए पिता भगवान होता है, लेकिन यहां तो बेटी के लिए पिता शैतान बन गया था। मनु को कई दिन तक रक्तस्राव होता रहा और उसे डाॅक्टर से इलाज तक करवाना पड़ा। जब मनु पीड़ा से कराहने लगी तो उसने अपने दादा महात्मा गांधी को खत लिखा, जो बापू के नाम से सारी दुनिया में प्रसिद्ध हो चुका था, लेकिन बापू ने साफ कह दिया कि इसमें मैं क्या कर सकता हूं? इसके बाद मनु ने अपनी दादी कस्तूरबा को खत लिखा, खत पढ़कर दादी बा की रूह कांप गई, ‘‘हाय मेरी फूल सी पौती के साथ यह कुकर्म...और वह भी पिता द्वारा...!!’’
बा ने 27 सितंबर 1936 को अपने बेटे अब्दुल्लाह को पत्र लिखा और बेटी के साथ कुकर्म न करने की अपील की और साथ ही पूछा कि ‘तुमने धर्म क्यों बदल लिया? और गोमांस क्यों खाने लगे?’
बा ने बापू से कहा, ‘‘अपना बेटा हीरा मुस्लिम बन गया है, तुम्हें आर्य समाज की मदद से उसे दोबारा शुद्धि संस्कार करके हिन्दू बना लेना चाहिए।’’
बापू- ‘‘यह असंभव है!’’
बा- ‘‘क्यों?’’
बापू- ‘‘देखो मैं शुद्धि आंदोलन का विरोधी हूं, जब स्वामी श्रद्धानंद ने मलकाने मुस्लिम राजपूतों को शुद्धि करके हिन्दू बनाने का अभियान चलाया था तो उस अभियान को रोकने के लिए मैंने ही आचार्य बिनोबा भावे को वहां भेजा था और मेरे कहने पर ही बिनोबा भावे ने भूख हड़ताल की थी और अनेक हिन्दुओं को मुस्लिम बनाकर ही दम लिया था, मुझे इस्लाम अपनाने में बेटे के अंदर कोई बुराई नहीं लगती, इससे वह शराब का सेवन करना छोड़ देगा।’’
‘‘शराब का सेवन करना छोड़ देगा,’’ बा ने कहा, ‘‘वह तो अपनी ही बेटी से बीवी जैसा बर्ताव करता है।’’
‘‘अरे नहीं ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहा होगा, हम भी अनेक औरतों और लड़कियों के संग नग्न सो जाते हैं और अपने ब्रह्मचर्य व्रत की परीक्षा करते हैं।’’
‘‘तुम्हारे और तुम्हारे बेटे के कुकर्म पर मैं शर्मिंदा हूं।’’ कहते हुए वह घर से निकल पड़ी थी और सीधे पहुंची थी आर्यसमाज बम्बई के नेता श्री विजयशंकर भट्ट के द्वार पर और आवाज लगाई थी साड़ी का पल्ला फैलाकर, ‘‘क्या अभागन औरत को भिक्षा मिलेगी?’’
विजयशंकर भट्ट बाहर आए और देखकर चौंक गए कि बा उनके घर के द्वार पर भिक्षा मांग रही है, ‘‘मां क्या चाहिए तुम्हें?’’
‘‘मुझे मेरा बेटा लाकर दे दो, वह विधर्मियों के चंगुल में फंस गया है और अपनी ही बेटी को सता रहा है।’’
‘‘मां आप निश्चित रहें आपको यह भिक्षा अवश्य मिलेगी।’’
‘‘अच्छी बात है, तब तक मैं अपने घर नहीं जाउंगी।’’ कहते हुए बा ने उनके ही घर में डेरा डाल लिया था।
*श्री विजयशंकर भट्ट ने अब्दुल्लाह की उपस्थिति में वेदों की इस्लाम पर श्रेष्ठता विषय पर दो व्याख्यान दिए, जिन्हें सुनकर अब्दुल्लाह को आत्मग्लानि हुई कि वह मुस्लिम क्यों बन गया। फिर अब्बदुल्लाह को स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दिया गया। जिसका असर यह हुआ कि जल्द ही बम्बई में खुले मैदान में हजारों की भीड़ के सामने, अपनी मां कस्तूरबा और अपने भाइयों के समक्ष आर्य समाज द्वारा अब्दुल्लाह को शुद्ध कर वापिस हीरालाल गांधी बनाया गया।* महात्मा गांधी को जब यह पता चला तो उन्हें दुख हुआ कि उनका बेटा क्यों दोबारा काफिर बन गया और उन्होंने बा को बहुत डांटा कि तुम क्यों आर्य समाज की शरण में गई...बा को पति की प्रताड़ना से दुख पहुंचा और वह बीमार रहने लगी।
कस्तूरबा को ब्राॅन्काइटिस की शिकायत होने लगी थी, एक दिन उन्हें दो दिल के दौरे पड़े और इसके बाद निमोनिया हो गया। इन तीन बीमारियों के चलते बा की हालत बहुत खराब हो गई। डाॅक्टर चाहते थे बा को पेंसिलिन का इंजेक्शन दिया जाए, लेकिन वह इंजेक्शन उस समय भारत के किसी अस्पताल में नहीं था। बात गवर्नर तक पहुंचती और उन्होंने विशेष जहाज द्वारा विलायत से इंजेक्शन मंगाया। लेकिन बापू इसके खिलाफ थे कि इंजेक्शन लगाया जाए। बापू इलाज के इस तरीके को हिंसा मानते थे और प्राकृतिक तरीकों पर ही भरोसा करते थे। बा ने कहा कि अगर बापू कह दें तो वो इंजेक्शन ले लेंगी। लेकिन बापू ने कहा कि ‘वो नहीं कहेंगे, अगर बा चाहें तो अपनी मर्जी से इलाज ले सकती हैं।’ जीवन की आशाभरी दृष्टि से बा बेहोश हो गई और बापू ने उनकी मर्जी के बिना इंजेक्शन लगाने से मना कर दिया। एक समय के बाद गांधी ने सारी चीजें ऊपरवाले पर छोड़ दीं। 22 फरवरी 1944 को महाशिवरात्रि के दिन बा इस दुनिया से चली गईं।
कालांतर में मनु का विवाह एक कपड़ा व्यवसायी सुरेन्द्र मशरुवाला से हुआ, जो आर्य समाजी थे और जिस दिन वे ससुराल में चली तो पिता ने यही कहा था, ‘‘बेटी मुझे क्षमा कर देना।’’
‘‘आकाश कहां तक है उसकी कोई थाह नहीं है और मैं अपने पंखो से उड़कर कहीं भी जा सकती हूं, यह मेरी योग्यता पर निर्भर करता है, उड़ते हुए मुझे पीछे नहीं देखना है।’’ उसने क्षमा किया या नहीं नहीं पता, लेकिन विदाई पर यही कहा था।
अब्दुल्लाह से हीरालाल बने बापू के पुत्र स्वामी श्रद्धानंद शुद्धि सभा के कार्यकर्ता बन गए और मरते दम तक गैर हिन्दुओं को हिन्दू बनाने के कार्यक्रम से जुड़े रहे, लेकिन उनकी गर्दन कभी उंची नहीं हुई, जबकि मनु का चेहरा हमेशा खिला रहता था और उन्होंने समाज सेवा को अपना कर्म बना लिया था। मनु का रिश्ता महाराष्ट्र राज्य बाल विकास परिषद और सूरत के कस्तूरबा सेवाश्रम से रहा है। आजकल मनु की बेटी उर्मि डाॅक्टर हैं और अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर भूपत देसाई से उनका विवाह हुआ है, उनके दो बच्चे हैं - मृणाल और रेनु।
बापू, जिसे आजकल महात्मा गांधी कहते हैं, उन्हें सारी दुनिया जानती है, लेकिन मनु को कोई नहीं जानता, जिन्होंने बलात्कारी पिता को भी इस्लाम की लत छुड़ाकर वेदों के रास्ते पर लाकर माफ कर दिया था।
*साभार- वेद वृक्ष की छाया तले, लेखिका फरहाना ताज। गांधी के वह पत्र भी उपलब्ध हैं जिसमें स्वीकार किया गया है कि उसके पुत्र हीरा लाल उर्फ अब्दुल्लाह ने अपने बेटी मनु को हवश का शिकार बनाया था...यह पत्र नीलाम हुए थे। बा को इंजेक्शन ने लगवाने वाली बात फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखी है कि गांधी ने उनको मरवा दिया अपनी हठ से।*मूल रूप में ही अग्रेसित किया है। "गांधी माई फादर" हिंदी फिल्म देखें।