आज से 15 दिन तक जो घटनाये 1 अगस्त से 15 अगस्त 1947 को घटित हुई उनकी जानकारी भेजने का प्रयास कर रहा हूँ। उक्त जानकारी प्रशांत पोळ नामक व्यक्ति के द्वारा लिखित *वे पंद्रह दिन* नामक पुस्तक से ली गई है।
बुधवार, अगस्त 03, 2022
प्रशांत पोळ के द्वारा लिखित *वे पंद्रह दिन*
रविवार, जुलाई 10, 2022
भील राजकुमारी शबरी को क्यों दलित कहा जा रहा है?
भील राजकुमारी शबरी को
आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे,
तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।
शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी।
महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे।
शबरी को समझाया
"पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।"
अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा।
उसने फिर पूछा- कब आएंगे..?
महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे।
वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे।
महर्षि, शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।
आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।
ये उलट कैसे हुआ।
गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ??
महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।
महर्षि मतंग बोले-
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा।
फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।
फिर प्रतीक्षा..
फिर उनका विवाह कैकई से होगा।
फिर प्रतीक्षा..
फिर वो जन्म लेंगे।
फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा।
फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा।
तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे।
तुम उन्हें कहना-
आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये।
उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।
शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़
अबोध शबरी, इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई।
वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???"
महर्षि मतंग बोले- "वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे। यह भावी निश्चित है। लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे "अवश्य"...!
जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। इसलिए प्रतीक्षा करना। वे कभी भी आ सकते है। तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।"
शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी। वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है।
हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती।
कभी भी आ सकतें हैं।
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। शबरी बूढ़ी हो गई। लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही।
और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े। शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।
गुरु का कथन सत्य हुआ। भगवान उसके घर आ गए। शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।
ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो। जय हो। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-
"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"
राम मुस्कुराए- "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल?"
"जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।
राम ने कहा- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”
"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है। पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’।
”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)
पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)
राम मुस्कुराकर रह गए!!
भीलनी ने पुनः कहा- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं!" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी। यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”
राम गम्भीर हुए और कहा-
भ्रम में न पड़ो मां! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”
रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है।
राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि
“सहस्त्रों वर्षों के बाद भी,
जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि
इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और
उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था।”
"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं!
यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।"
राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है।”
(अंत्योदय)
राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ!
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।
राम ने फिर कहा-
राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।”
"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।”
"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।”
"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है।”
"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए।”
और
"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते है।”
शबरी की आँखों में जल भर आया था।
उसने बात बदलकर कहा- "बेर खाओगे राम..?”
राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां!"
शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये।
राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा-
"बेर मीठे हैं न प्रभु..?”
"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है।”
सबरी मुस्कुराईं, बोली- "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!"
मर्यादा-पुरुषोत
जय जय सिया राम 🌼🌿🚩
(साभार फेसबुक)
आइए डॉक्टर बने....
आइए डॉक्टर बने.....
बुधवार, जून 22, 2022
भारतीयों को प्रेम से वश में करने के लिए इस्लाम ने सूफी का आडंबर किया।
अरबी इतिहासकार याकूबी लिखता है, जब मोहम्मद बिन कासिम के भारत आक्रमण के बाद दूसरे सारे आक्रमण विफल होने लगे तब खलीफा को उनके अमीरों ने समझाया- "भारत के लोग इतने जुझारू हैं कि उन्हें केवल तलवार से नहीं हराया जा सकता। वे धर्मभीरु हैं, यदि उन्हें प्रेम से अपने वश में किया जाय तो उस देश को आसानी से फतह किया जा सकता है।"
और यही कारण है कि उसके बाद जब जब कोई आतंकी भारत में घुसा तो उसके साथ कोई न कोई सूफी अवश्य था। मोहम्मद गजनवी के साथ आया अलबरूनी, मोहम्मद गोरी के साथ आये मोइनुद्दीन चिश्ती...
खैर! यह हमारा विषय नहीं, हम बात कर रहे हैं कासिम के आक्रमण के बाद की तीन सदियों की।
मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण में जिस बर्बर तरीके से मंदिरों, चैत्यों, बौद्ध मठों को तोड़ा गया था, और निर्दोष बच्चों बूढ़ों को क्रूरतापूर्वक मारा गया था, उसने भारत को एकाएक चैतन्य कर दिया था। और उसके बाद पश्चिमोत्तर भारत में कई राजवंश ऐसे उभरे जिन्होंने दो शताब्दियों तक अपनी साहसी तलवार के बल पर बर्बर तुर्कों को सिंधु के उस पार ही रोक कर रखा। इन्ही में एक था शाही राजवंश...
उत्तर में पेशावर से दक्षिण में मुल्तान तक लगभग छह सौ किलोमीटर की सीमा इन्होंने घेर रखी थी, जिसे पार करना तुर्कों के लिए लगभग असंभव था। ये मूलतः कश्मीरी पंडित थे।
वैसे हमारा विषय यह भी नहीं! हमारा विषय यह है कि सिन्धु नदी की गोद में, हिमालय की मनोरम छटा के बीच इन्ही शाहियों ने कुछ मन्दिर बनवाये थे। विशाल, भव्य, अद्वितीय सुन्दर... जैसे वही धरा का स्वर्ग हो।
प्रकृति का सौंदर्य ऐसा कि वहाँ पहुँचते ही कोई भी सभ्य मनुष्य अपने समस्त अवगुण भूल कर ईश्वर और प्रकृति के आगे नतमस्तक हो जाय। सभ्य व्यक्ति सौंदर्य को पूजता है और असभ्य उसे तहस नहस कर देता है। जिन बर्बरों के संस्कार में केवल तोड़ना और काटना ही था, उन्हें तो मनुष्य मानना ही असभ्यता है।
ये मन्दिर पूरी तरह प्रकृति को समर्पित थे। उन सात नदियों को समर्पित मन्दिर, जिनके नाम पर युगों पूर्व इस विशाल भूभाग को सप्तसैंधव प्रदेश कहा गया था। सिन्धु, सरस्वति, वितस्ता, अस्किनी, पुरुषणि, शतद्रु, विपाशा... आज की सिंधु, लुप्त सरस्वति, झेलम, चनाव, रावी, शतलज, व्यास...
मन्दिर अद्भुत पत्थरों से बने थे। कुछ पत्थर शहद के रङ्ग के, तो कुछ श्वेत पारदर्शी...कुछ नीलम जैसे, तो कुछ रक्त की तरह लाल! लगता जैसे स्वयं विश्वकर्मा ने बहुमूल्य रत्नों से बनाया हो इस तीर्थ को... ऐसे पत्थर उस क्षेत्र में नहीं होते। किवदंतियों में है कि हिमालय की ऊंचाई से सिंधु नदी के रास्ते ये पत्थर लाये गए थे।
मन्दिर के रक्षण हेतु हर ओर कुछ विशाल अट्टालिकाएं बनीं थीं, जहाँ छोटी सी सेना निवास करती थी।
दशवीं सदी में जब गजनवी ने भारत में प्रवेश किया और शाही राजवंश पराजित हुआ तो इन मंदिरों की प्रतिष्ठा भी चली गयी। तबसे अब तक सैकड़ों बार इन मंदिरों के सुंदर पत्थरों पर बर्बरों की तलवारें चली हैं। पर समय की मार झेलते ये खंडहर अब भी ऐसे हैं कि पूरे पाकिस्तान में इनसे सुन्दर और कुछ नहीं।
सात में से दो मन्दिर तो गिर गए, पाँच के ध्वंसावशेष बचे हैं। सम्भव है कल वे भी गिर जांय! समय सबकुछ समाप्त कर देता है।सभ्यता भी एक दिन मरती है और बर्बरता भी! बचती है कहानियां, जो बताती हैं कि कौन बनाने आये थे और कौन तोड़ने...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
शनिवार, मई 07, 2022
सारे संगीत का मानक 440 Hz करवा दिए... जिससे.. लोग मूरख रहें और आपस मे लड़ते रहें ..
रविवार, मार्च 27, 2022
इस्लाम की सच्चाई को दिखाने का बीड़ा भारत के कुछ एक्स मुस्लिमो ने उठाया हैं
इस्लाम की सच्चाई को दिखाने का बीड़ा भारत के कुछ एक्स मुस्लिमो ने उठाया हैं जिस से भारत पाकिस्तान दुनिया के इस्लाम जगत के दीन (सिस्टम) में भूचाल आ गया हैं. वास्तव में पूरा इस्लाम झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ हैं, कुरआन का अनुवाद भी अधूरा हैं जो भी कुरआन जानते हैं वो रट्टा मारते रहे हैं, उस के अंदर लिखी बाते सिर्फ मौलाना कारी आलिम ही जानते हैं और तो और हदीशो का २०% भी दुनिया तक नहीं पहुंचाया गया हैं क्युकी सभ्य भाषा में इस्लाम की सच्चाई रामायण महाभारत की तरह चित्रित नहीं की जाती , इस से भी आगे शब्दों में भी सभ्य समाज अपने समाज में बच्चो को बता भी नहीं सकता.
1. Sachwala :
Sachwala (pseudo name) is an India-born activist & critic of Islam. He is quite articulate in the Quranic tongue & Urdu language.
https://www.youtube.com/c/Sachwala
2. Ex-Muslim Bharti :
Interviews of Ex Muslim women.
https://www.youtube.com/channel/UC9AOGG3z-QuopUBW6UycuVg
3. Almosow Free
Ex-muslim Sanatani. Atheist to the Abrahamic God. Lecturer - Academic Philosophy. This channel attempts to get a holistic ...
https://www.youtube.com/c/AlmosowFreeOM
4. Kaali Dasi काली दासी Sarah Khan
जय काली जय महादेव जय भारत Hey Sarah Khan here also know as KaaliDasi/काली दासी I was always a seeker, though ...
https://www.youtube.com/c/SarahKaliDasi
5. Indian ExMuslim Sahil :
I was a devoted muslim before and a hardcore daee however recently left Islam as it does not make any sense to me now.
https://www.youtube.com/channel/UCjk7V7Rw2jJSflLXYxBOY0g
6. Ex-Muslim Zafar Heretic
I am an Indian ex-muslim Atheist and activist. I left islam after knowing it's reality and bad teachings..I love to expose this religion ...
https://www.youtube.com/c/ExMuslimZafarHeretic
7.EX-MUSLIM SAMEER
Ex-MUSLIM SAMEER AGNOSTIC | HUMANIST | FREE-THINKER Only Humanity And Love Can Change The World. Peace Upon ...
https://www.youtube.com/channel/UCnfqx-4D7HtfIH-xs4ulvmQ
8.Pooja Praveen upadhyaay : Har Har Mahadev
https://www.youtube.com/c/PoojaParveenUncompromisingIndia/videos
9. Jaidevi ( Uzma Khan) :
I am an ex-Muslim after knowing that I have been lied too and there is no rights for women in Islam.
My channel is about to educate about Islam (Quran & Hadith) to the Western Kuffar Women so they don't come into Muslims men's trap by their manipulation and sugar quoting Quran & hadiths.
https://www.youtube.com/c/UzmaKhan6
10. Sulemani Jalebiya
This channel is for making informative videos of Islam with authentic reference. Please kindly note that this channel ...
https://www.youtube.com/channel/UCWa4Nrdpkzslx_ZBeXCjdYg
11. Ex muslim Yasmin Khan
Provide food cloth and shelter to poor children you are human show ❣️ kindness to your heart.
https://www.youtube.com/channel/UCNPa6Bf64QmM4hw89Q_UBDw
12. Faiz Alam :
https://www.youtube.com/channel/UCyM8STPVlMZ4HNyREOYUjzA
HINDU AWAKENING CHANNELS GAYATRI BOPATRA GOHAIN, GYAN SAFAR,MUNIKA SHERON, NEERAJ ATRI, SATYA SANATAN,ANKUR ARYA , THE SHAM SHARMA SHOW, AKTK AND MANY MORE...
SOUECE : COPIED
मंगलवार, दिसंबर 28, 2021
#जीसस_की_कब्र_भारत_में_है
यह संयोग मात्र ही नहीं है कि जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है, अनायास ही वह भारत में उत्सुक हो उठता हे, अचानक वह पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं यह उतनी ही प्राचीन बात है जितने पुराने प्रमाण और उल्लेख मौजूद हैं। आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व, सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। #ईसामसीह भी भारत आए थे।
ईसामसीह की तेरह से तीस वर्ष की उम्र के बीच का #बाइबिल में कोई उल्लेख नहीं है। और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्योंकि तैंतीस की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से तीस तक के सत्रह सालों का हिसाब गायब है। इतने समय वे कहां रहे, और बाइबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्हें जान-बूझकर छोड़ा गया है, कि वह एक मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसामसीह जो भी कर रहे हैं वे उसे सनातन भारत से लाए हैं।
यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्में, #यहूदी की तरह जिए, और यहूदी की तरह मरे। स्मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्होंने तो-ईसा और ईसाई ये शब्द भी नहीं सुने थे। फिर क्यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्यों? न तो ईसाइयों के पास इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब है, न ही यहूदियों के पास। क्योंकि इस व्यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुचाया। वे उतने ही निर्दोष थे, जितनी कि कल्पना की जा सकती है।
...पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्म था। पढे़-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्पष्ट देख लिया कि वे पूरब से विचार ला रहे हैं, जो कि गैर-यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ला रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्हें समझ आएगा कि क्यों वे बार-बार कहते हैं- "अतीत के पैगम्बरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे, तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है, तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।" यह पृर्णतः गैर-यहूदी बात है। उन्होंने ये बातें भारत में गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं।
वे जब भारत आए थे-तब सनातन बौद्ध पंथ बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए, पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बडा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्क उसमें डूबा हुआ था। उनकी करुणा, क्षमा, प्रेम के उपदेशों को पिए हुआ था। जीसस कहते हैं कि "अतीत के पैंराम्बरों द्वारा यह कहा गया था"- कौन हैं ये पुराने पैगम्बर? वे सभी प्राचीन यहूदी पैगम्बर हैंः इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,-"कि ईश्वर बहुत ही हिंसक है, और वह कभी क्षमा नहीं करता।?"
यहां तक कि उन्होंने ईश्वर के मुंह से भी ये शब्द कहलवा दिए हैं। पुराने टेस्टामेंट के ईश्वर के वचन हैं, " मैं कोई सज्जन पुरुष नहीं हूं, तुम्हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईष्र्यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं हैं वे सब मेरे शत्रु हैं।"
और ईसामसीह कहते हैं कि "मैं तुमसे कहता हूंः परमात्मा प्रेम है।" यह ख्याल उन्हें कहां से आया कि परमात्मा प्रेम है? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाय दुनिया में कहीं भी परमात्मा को प्रेम कहने का कोई और उल्लेख नहीं है।
उन सत्रह वर्षों में जीसस इजिप्त, भारत, लद्दाख और तिब्बत की यात्रा करते रहे। और यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूंदी धारणाओं से एकदम विपरीत थीं।
तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि अंततः उनकी मृत्यु भी भारत में हुई। और #ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे, तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्या हुआ? आजकल वे कहा हैं? क्योंकि उनकी मृत्यु का तो कोई उल्लेख है ही नहीं!
सच्चाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए। वास्तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे। क्योंकि यहूदियों की सूली आदमी को मारने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है। उसमें आदमी को मरने में करीब-करीब अड़तालीस घंटे लग जाते हैं। चूंकि हाथों में और पैरों में कीलें ठोंक दी जाती हैं, तो बूंद-बूंद करके उनसे खून टपकता रहता है। यदि आदमी स्वस्थ है तो साठ घंटे से भी ज्यादा लोग जीवित रहे ऐसे उल्लेख हैं। औसत अड़तालीस घंटे तो लग ही जाते हैं। और जीसस को तो सिर्फ छः घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था। यहूदी सूली पर कोई भी छः घंटे में कभी नहीं मरा है, कोई मर ही नहीं सकता है।
यह एक मिलीभगत थी (जीसस के शिष्यों की) पोंटियस पॅायलट के साथ। पोंटियस यहूदी नहीं था, वह रोमन वायसरॉय था। क्योंकि जूडिया उन दिनों रोमन साम्राज्य के आधीन था, और इस निर्दोष युवक की हत्या में उसे कोई रुचि नहीं थी। उसके दस्तखत के बगैर यह हत्या नहीं हो सकती थी, और उसे अपराध भाव अनुभव हो रहा था कि वह इस भद्दे और क्रूर नाटक में भाग ले रहा है। चूंकि पूरी यहूदी भीड़ पीछे पड़ी थी कि जीसस को सूली लगनी चाहिए, वह एक जीसस मुद्दा बन चुका था। पोंटियस पॅायलट दुविधा में था; यदि वह जीसस को छोड़ देता है, तो वह पूरी जूडिया को, जो कि यहूदी है, अपना दुश्मन बना लेता है। यह कूटनीतिक नहीं होगा। और यदि वह इस व्यक्ति को सूली देता है तो उसे सारे देश का समर्थन तो मिल जाएगा मगर उसके स्वयं के अंतःकरण में एक घाव छूट जाएगा कि राजनैतिक परिस्थिति के कारण एक निरपराध व्यक्ति की हत्या की गई, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया था।
तो उसने शिष्यों के साथ यह व्यवस्था की कि शुक्रवार को, जितनी संभव तो सके उतनी देर से सूली दी जाए। चूंकि सूर्यास्त होते ही शुक्रवार की शाम को यहूदी सब प्रकार के कामधाम बंद कर देते हैं; फिर शनिवार को कुछ भी काम नहीं होता, वह उनका पवित्र दिन है। यद्यपि सूली दी जानी थी शुक्रवार की सुबह, पर उसे स्थगित किया जाता रहा; ब्यूरोक्रेसो तो किसी भी कार्य में देर लगा सकती है। अतः जीसस को दोपहर के बाद सूली पर चढ़ाया, और सूर्यास्त के पूर्व ही उन्हें जीवित उतार लिया गया, यद्यपि वे बेहोश थे, क्योंकि शरीर से रक्त स्राव हुआ था, और कमजोरी आ गई थी। फिर जिस गुफा में उनकी देह को रखा गया वहां का चैकीदार... पवित्र दिन के पश्वात् यहूदी उन्हें पुनः सूली पर चढ़ाने वाले थे, मगर वह चैकीदार, गुफा का रक्षक रोमन था...इसीलिए यह संभव हो सका कि शिष्यगण जीसस को बाहर निकाल लिए और फिर जूडिया के भी बाहर गए।
#जीसस ने भारत में जाना क्यों पसंद किया? क्योंकि अपनी युवावस्था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे। उन्होंने अध्यात्म का और ब्रह्म का परम स्वाद इतनी निकटता से चखा था, कि उन्होंने वहीं लौटना चाहा। तो जैसे ही स्वस्थ हुए, वे वापस भारत आए, और फिर एक सौ बारह साल की उम्र तक जिए।
#कश्मीर में अभी भी उनकी कब्र/ समाधि है। उस पर जो लिखा है, वह हिब्रु भाषा में है...स्मस्ण रहे भारत में कोई यहूदी नहीं रहते। उस शिलालेख पर खुदा है ‘जोशुआ’- वह हिब्रू भाषा में ईसामसीह का नाम है। ‘जीसस’ जोशुआ का ग्रीक रूपांतरण है। "जोशुआ यहां आए"- समय, तारीख वगैरह सब दी हैं। "एक महान सद्गुरु, जो स्वयं को भेड़ों का गडरिया पुकारते थे, अपने शिष्यों के साथ शांतिपूर्वक एक सौ बारह साल की दीर्घायु तक यहां रहे" इसी वजह से वह स्थान "भेडों के चरवाहे का गांव" कहलाने लगा। तुम वहाँ जा सकते हो, वह शहर अभी भी है- ‘पहलगाम’, उसका कश्मीरी में वही अर्थ है- ‘गड़रिए का गांव।’
वे यहाँ रहना चाहते थे, ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सके। एक छोटे से शिष्य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकि वे सभी शांति में, मौन में डूबकर आध्यात्मिक प्रगति कर सकें। और उन्होंने मरना भी यहीं चाहा, क्योंकि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहाँ जीवन एक सौंदर्य है, और यदि तुम मरने की कला जानते हो तो यहाँ मरना भी अत्यंत अर्थपूर्ण है।
केवल #भारत में ही मृत्यु की कला खोजी गई है, ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है। वस्तुतः तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं।
इससे भी अधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मूसा ने भी भारत में आकर देह त्यागी। उनकी और जीसस की समाधियां एक ही स्थान में बनी है। शायद जीसस ने ही महान सदगुरु मूसा के बगल वाला स्थान स्वयं के लिए चुना होगा। पर मूसा ने क्यों काश्मीर में आकर मृत्यु में प्रवेश किया।
#मूसा ईश्वर के देश "इजराइल" की खोज में यहूदियों को इजिप्त के बाहर ले गए थे। उन्हें चालीस वर्ष लगे, जब इजराइल पहुंचकर उन्होंने घोषणा की कि "यही है वह जमीन, परमात्मा की जमीन, जिसका वादा किया गया था। और मैं अब वृद्ध हो गया हूं तथा अवकाश लेना चाहता हूं। हे नई पीढ़ी वालो, अब तुम संभालो।"
क्योंकि जब उन्होंने इजिप्त से यात्रा प्रारंभ की थी, तब की पीढ़ी लगभग समाप्त हो चुकी थी। बूढ़े मरते गये, जवान बूढ़े हो गये, नए बच्चे पैदा होते रहे। जिस मूल समूह ने मूसा के साथ शुरूआत की थी, वह अब बचा ही नहीं था। मूसा करीब-करीब एक अजनबी की भांति अनुभव कर रहे थे। उन्होंने युवा लोगों को शासन और व्यवस्था का कार्यभार सौंपा और इजराइल से विदा हो लिए।
यह अजीब बात है कि यहूदी धर्मशास्त्रों में भी, उनकी मृत्यु के संबंध में, उनका क्या हुआ इस बारे में कोई उल्लेख नहीं है। हमारे यहां (काश्मीर में) उनकी कब्र है। उस समाधि पर भी जो शिलालेख है, वह हिबु्र भाषा में ही है। और पिछले चार हजार सालों से एक यहूदी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी उन दोनों समाधियों की देखभाल कर रहा है।
मूसा भारत आना क्यों चाहते थे? केवल मृत्यु के लिए? हां, कई रहस्यों में से एक रहस्य यह भी है कि यदि तुम्हारी मृत्यु एक बुद्धक्षेत्र में हो सके, जहां केवल मानवीय ही नहीं वरन् भगवत्ता की ऊर्जा-तरंगें हों, तो तुम्हारी मृत्यु भी एक उत्सव और निर्वाण बन जाती है।
सदियों से, सारी दुनिया से साधक इस धरती पर आते रहे हैं। यह देश दरिद्र है, उसके पास भेंट देने को कुछ भी नहीं, पर जो संवेदनाशील हैं; उनके लिए सबसे अधिक समृद्ध कौम इस पृथ्वी पर कहीं और नहीं है। लेकिन यह समृद्धि आंतरिक है।
– ओशो
मेरा स्वर्णिम भारत
परिशिष्ट-१
भारत: एक अनूठी संपदा